My first blog
Saturday, 28 November 2015
जिंदगी जो मिली तो खेल समझा रिश्तों को निभाने ना आया और बेमेल समझा . नासमझी थी , बेकद्री थी जो मोहब्बत को जवानी का खेल समझा . अब जो हुए खाली हाथ तो कुछ भी नहीँ है पास . जिये जा रहे हैं , जिये जा रहे हैं क्योंकि बुढ़ापा है साथ .
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