Thursday, 3 August 2017
Tuesday, 1 August 2017
सत्य की खोज
"सत्य की खोज"
एक पढ़ाई जो हमने पढ़ी थी
सीधे-सीधे रास्तों से होकर गुजरी थी
ना था तब यूँ शोर -शराबा
बस योगियों वाली सुधि थी.
एक आठ बजे का छोटा सा समाचार
बी.बी.सी सुनो तो थोड़ा और विस्तार
पर कहां लोग इतने उतावले हुए पड़े थे
उन्मादियों का भी पहरा ना इतना विकराल
जान पड़ा था
राजनीति की सरगर्मियां ना उतनी तीखी
बाण चला रहा था
आज दुनिया जो सिमट कर हथेली में बैठ गई है
हर कोई है दोस्त हर कोई अजनबी है
हाथ बढाएं भी तो कैसे
ना जाने अगले के हाथों की लकीर किस
बात से बंधी है
वो ज़माना अब कहाँ रहा
भटका जो रास्ता मुसाफिर
अनजान राहगीर ने हाथ थाम लिया
विश्वास था कि मंजिल तक
पहुँचायेगा वो जरूर
पर आज की शिनाख्तगी है बड़ी
टेढ़ी-मेढ़ी ,उलझी-उलझी
हरेक राह उन्मादियों से भरी पड़ी
कौन सत्य पथ पर चलाएगा
कौन ठगी के राह ले जाएगा
कहीं आतंकियों से तो
ना है सांठ-गांठ उसकी
कहीं धर्म की रोटियां तो
ना सेक रहा है कहीं कोई
कहीं कालाबाज़ारी जोर-शोर है
आवाजें उठ रही हैं भ्रष्टाचार
बेजोड़ है
जो कोई अपना आ गया इस
चपेट में
शक जो गहराया एक से
या रब ! मैं ढूंढने लगा हूँ
वो छुपा शख्स
चेहरा नेक में.
Aparna Jha