विद्रोही मन सब जानता है
बांध कब टूट जाये नहीं पता है
ज्वालामुखी प्रस्फुटन पर है
सम्भालो की सैलाब आने ना पाये
संभालो की कोई चिंगारी सुलगाने ना पाये
प्यारी सी एक रूह है
समंदर का सीना है
अपने सरहद की निगहबान यही
खुद के ज़ज़्बातों की कद्रदान यही
अरे ये नारी है बस समझो इसको
और ना कोई दरकार इसे
बस स्वीकार करो,स्वीकार करो
मंज़िलों की पवाज़ है,उड़ने दो
उपकार समझ ना उपकार करो
ना उपकार करो.
Aparna Jha