Friday, 28 September 2018

मन की आवाज

"मन की आवाज़"
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वो तेरी दुआओं का असर था
जिंदगी रफ़्तार से बढ़ती रही

था नहीं कुछ भी मुक्कमिल पर
एक एहसासे मुक्कमिल बनती गई

दिन बा दिन उम्र ढलती रही पर
उम्र  दराज़    लगने लगी

हवाओं में एहसास तूफानों सा
आज वही 'नसीम' बन दिल को बहलाने लगी

अफवाहों का बाज़ार फिर क्यों गर्म हुआ इस कदर
जिंदगी बेवजह जलाने लगी

यूँ झूठ इतनी काबिज़ हो गई दुनिया पर
सच्चाई बहाने लगने लगी

सच्चआइयों में जीना क्यों हो गया दुश्वार इतना
ईमानदारी मौत के बहाने ढूंढ लाने लगी

कोई तो रहमो-करम होता उस पर,
इतने मौत के साए ना उन पर मंडराए होते.

रहम कर ,रहम कर ऐ दुनियावाले कि
अब तो खुदा भी उस पे रहम बरपाने लगे
@Ajha.28.09.16