Monday, 22 January 2018

शिकायत

कहते भी हैं और ,
शिकायत भी है कि
रोज़ तुम मिला करो .
पर सच तो ये है मेरे दोस्त _
मन मिलने की बात है सो मिल गये ,
भौतिकता तो दिखाने की बात है ,
क्षण भंगुर है , भंगुर हो के रहेगी
शाश्वत मन का मिलना है
ना दिखे किसी को , अमर तो रहेगी .
@ Ajha . 22. 01.16

मज़हबी सीख

धर्म के नाम पे लड़ने वालों ,
बुरा ना मानों ऐ  दुनियाँवालों 
कैसा ये 'धर्म की राह 'और
कैसी ये 'सीख '. 
बचपन में जो सिखाया  _ 
" तू हिंदू बनेगा ना मुसलमान बनेगा , "
उसी कदमों पे हम चले थे
ना मालूम था कि मुर्शीद के सीख की
नींव इतनी कमज़ोर थी कि
इक हवा के झोंके ने
अल्फाज के मायने ही बदल डाले .
अब तो वर्षों की सीखी हुई बातों से
खुद को तो जुदा कर गये , पर
दिल में अब भी  वो सीख बाँकी है .
सुना था , इतिहास खुद को दुहराती है,
आज हम उसी दोराहे पे खड़े हैं , जहाँ
मेरे लिये मुर्शीद  की पदवी है और
शागिर्द मेरे सामने है .
फ़िर उसे सीख बतानी है और
उसके सामने फ़िर वही ज़माना है . .
@ Ajha . 22. 01. 1

Mursheed - guide
शागिर्द - स्टूडेंट , deciple

Saturday, 6 January 2018

इंद्रधनुष का आठवां रंग

"इंद्रधनुष का आठवां रंग"

"कर्मण्ये वाधिकारस्ते माँ फलेषु कदाचन", आज अरण्या इस कहे का सही मायने में अर्थ समझ चुकी थी. शायद इस कारण से ही तो आज वह दुनयावी चाहतों और उम्मीदों से दूर,संतुष्ट एवं सुखमय जी पा रही थी. सात सन्तानों में सबसे छोटी होने के कारण घर -बाहर सबों में छोटी बच्ची ही बनी रही. माँ-बाबूजी से सीधे तौर पर कभी बात करने का उसका मौका ही नहीं आया. अपने बड़े भाई बहनों की बातें सुनते और उन्हीं को अनुसरण करते बड़ी हो रही थी. परन्तु परिवार और समाज में होते उठा-पटक ने ना जाने कब का उसे परिक्व बना दिया था ,परन्तु उसकी सोच को भी कोई समझ पाता,किससे बताती वह,उसने अपने लिए मन ही मन एक कल्पना की दुनिया बना ली थी और उस दुनिया में हकीकी समस्याओं को कल्पना पटल पर रख खुद ही सवाल बन जाना ,आत्म मंथम करना और खुद ही में समाधान पा मन ही मन खुश हो जाना, यही उसके जीवन का तरीका बन गया था. उसकी यह विशेषता उसे विषम से विषम परिस्थितियों में भी सकारात्मक जीना सुझा जाती थी.उसकी इस विशेषता को लोग शायद उसकी कमजोरी अथवा डर मान बैठे थे जबकि खुद में वह इसे आत्मबल मानती थी और इस कारण अरण्या कभी टूटी नही थी.इसी कल्पनाशील दुनिया में एक उसने परिवार का सपना देखा था जिसे वह हकीकी जामा पहनाना चाहती थी. उसने सोचा था कि समर्पण की भावना ही सुखी पारिवारिक जीवन का सूत्र है, पर यह क्या यहाँ तो  सूत्र ही उलटे पर गए.सारी सृजनशीलता और कल्पनाशीलता मौन पड़ गई , अरण्या ने भी जीवन से समझौता कर लिया था कि बाकि का जीवन भी वह आशाओं और उम्मीदों की ख्वाहिश में ही बिता देगी.
बच्चों की सर्दियों की छुट्टी चल रही थी.आज काफी दिनों की ठंडक के बाद धूप की तपिश में बच्चे अपने स्कूली घरकाम कर रहे थे , तभी अरण्या की नज़र इंद्रधनुष के उस अधूरे से चित्र पर पड़ी, जिसे उसका बेटा बड़ी लीनता से उसे पूरा करने में लगा था. अरण्या के मन में भी एक बिजली सी कौंधी , उसने भी एक कैनवास ले कूची से ना जाने कितने ही रंग बिखेरे और बिखेरती चली गई.आज शायद उसे अपने अस्तित्व का ज्ञान हो आया था . इंद्रधनुष में तो सात ही रंग होते है पर अरण्या इन रंगों के सहारे ना जाने कितने सारे और रंग बिखेरती गई  जहां कैनवास को भी अपनी सीमा बढ़ानी पड़ गई.@Ajha.05.01.17
©अपर्णा झा.

घर-संसार

"घर संसार"

"देखो ना पांच महीने से अपने बेटी-दामाद  को संभाल ही तो रही थी.सोचा था, जैसे भी हो नाती को पांच महीने का पाल-पोस कर ही उसके दादा के घर भेजुंगी.कितना अरमान था ख़ुशी-ख़ुशी बेटी को ससुराल भेजने का, सब बेकार गया." शाम में अपने ड्राइवरी की नौकरी से गजानन घर लौटे ही थे कि पत्नी अपने रुआसें स्वर में फूट पड़ी. दुःख तो गजानन को भी हुआ था और पत्नी को समझाते हुए खुद भी टूट पड़े थे. समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. विवाह के डेढ़ साल के बाद के अंतराल में गजानन ने ना जाने कितने तोहफे अपनी बेटी के ससुराल भेजे थे. अलावे इसके कि जब वह गर्भवती हुई तो गजानन ने बेटी को उसके मायके बुलवा लिया था. बिचारे सामजिक रिवाज़ और दो बेटे पर एक बेटी का पिता होना भुगत रहे थे. अपनी ड्राइवरी से इतनी कमाई करने की कोशिश करते  जिससे कि उनके परिवार का भरण-पोषण हो जाए. इसके लिए बेशक दिन और रात ऑटो रिक्शा क्यों ना चलाना पड़े.
             आज गजानन अपनी वेदना अपने पुराने मालिक -मालकिन को सुना रहा थे,जिनसे उसे गहरी आत्मीयता थी. मालकिन ने तब गजानन को समझाया था _ "देखो गजानन, बेटी के लिए तुम्हारी ये तड़प वाकई सच्ची है, पर हमेशा याद रखना , अपने बच्चों के आगे कमजोर मत पड़ना. कुछ करना है उनके लिये तो  एक मजबूत नींव की मानिंद खड़े रहो, ना कि एक बैसाखी की तरह जो हमेशा तुम्हारा सहारा ले खड़ा हो. तुम्हारी जो जिम्मेदारी थी वह पूरी हुई, अब यह उनकी जिंदगी का कैनवास है ,अब उन्हें खुद से इस कैनवास में रंग  भरने दो."@Ajha.05.01.17
©अपर्णा झा.