"पत्थर : ... सी दो टूक बातें"
.......…..............................
चल ही पड़ी जब
बात पत्थरों की
कौन हो बेहतर
वो जो बैठा बुत
बना देवालयों में
या वो जो है
रास्ते का पत्थर
सोचना था कैसा
मानो तो देवता
नहीं तो पत्थर
धर्म दिखी तो रुक गए
आस्था बनी तो झुक गए
हुई क्या विरक्ति
एक संग दे मारा और
खून हो गए
जिसकी जैसी हुई आस्था
बस पत्थर भी दिखा उस जैसा
आइना भी दिखता
देख कर चेहरा
खुद ही फिर समझ जाएगा
शैतान बसता है अंदर
या फिर खुदा
फिर क्यों हो झुकना बुत के आगे
जब कायनात ही हो तेरे आगे
इसी में बस तूँ अपना
मन रमा रे
यही है बस तेरा अपना रे.
@Ajha.22.09.16
No comments:
Post a Comment