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बहकाये हुए हो क्यों
कल तक जो था तुतला के बोल रहा
मेरी ही हथेली थामें वो
हँसते हुए था चल रहा
थी ख्वाहिश जिसे आसमाँ की
आज भला क्यों वो चुप हो गया
तब की बातें थीं, माँ की गोद थी
था वो खुशकिस्मती को लिख रहा
पर वो वरक़ आज कहीं गुम हो गया
ऐसी इक बदहवा चली कि
उसमें कहीं गुम तुम हो गए
कैसा रहबर तुझको मिला कि
सारे आशनाई दूर तुमसे हो गए
ये कैसी बर्बरता तुमने सीखी
लोग मातम हैं मना रहे
और दूर कहीं छुपे हुए तुम खुश हो रहे
ये राहे बहिश्त कैसी!
जो जीना तुझे आया नहीं
इस जीवन की ख़ुशी ना मना सके
अनदेखी जन्नत में तुम हो ईद मना रहे
तारीख है गवाह इसकी
'तेरे-मेरे' के किस्से में
भला ना हुआ किसी का
नुक्सान ही नुक्सान हर कोई हैं उठा रहे.
बस करो अब इक गहरी साँस लो
रूह को जो इक जिंदगी मिली
ज़रा उसकी कदर करना सीख लो.
@Ajha.20.09.16
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