Tuesday, 23 May 2017

#प्यार बिकता नहीं दुकानों में #YQdidi Follow my writings on http://www.yourquote.in/aparna-jha-w03/quotes/ #yourquote

Wednesday, 17 May 2017

Monday, 15 May 2017

Sunday, 14 May 2017

Thursday, 11 May 2017

दोस्ती

पल दो पल का
मिलना, फिर
शिनाख्तगी और फिर
हमशिनाख्त हो गए
अलबत्ता
ना था मालूम कि
दोस्ती एक एहसास है
इस कदर निभती कि
आगाज़ अजनबी सा
शिनाख्तगी फिर
हमशीनख्त और फिर
हमदान
साथ जो निभी तो
सफर में हमसफ़र,
हमकदम हो गए
ऐतबार जो हुआ
अहतरामी दोस्ती में आ गई
हमवफ़ा से हमराज़ और
ताल्लुक़ातों से
फिर हमनफ़स,हमदम
हो गए
बात जो आगे बढ़ी
जान और जानेजाना एक
दूजे के हो गए
दोस्ती की तिलिस्म ऐसी
की कुछ और ना सूझे
बस रहमत,रब और खुदा
ही दिखाई दे
या रब क्या खूब ये
नेमत अता की तुमने
दो जहां एक नज़र आते हैं
हर दोस्त आपके नाम
'आफरीन-आफरीन'
फरमाते हैं.
@Ajha.12.05.17

"स्वप्न मन का मेरे"

"स्वप्न मन का मेरे"

मेरे जीवन की परिक्रमा
तुम्हारा साथ
धूरी है मेरे अंतस
से निकलती भावना जो,
शब्दों के रूप में
कविताओं का रूप ले
ना जाने किन-किन लोकों का
विचरण कर रही
विहंगम दृश्यों से नाता जोड़ती
कभी परियों के देश
ले परियों का भेष
स्वप्नलोक के सपने देखती
कभी स्वर्गलोक में संग
अप्सराओं के नाचते थिरक रही
कभी तानसेन की रागिनियाँ बन
दीपक सा प्रज्वलित हो
जगत से तम दूर कर रही
कभी मल्हार हो बरस-बरस
खुशियां बरसा रही
बासंती हवाओं में खुद को
विलीन कर
लुकाछिपी खेलती
फिर से वही वेद-पुराणों की भाषा बन
पुनः ऋचाओं का सृजन कर
संस्कार और संस्कृति की
पहचान बन
ब्रह्मांड में प्रेम सुधा बरसाती
ऐसी में सराबोर होते रहते
तुम-हम और हम-तुम, संग
सारे संगी-सहारे
विलुप्त हुआ जाता अहंग
और सार तत्व
"वसुधैव कुटुम्बकम"
यही हमेशा सौंदर्य बोध
भूत, वर्तमान और भविष्ये
मेरे सपनों के इस संसार में
तुम होना मेरे संग प्रिये.
@Ajha.11.05.17

#मन #आहत #है टीवी चैनेलों पर बहस और दलीलों को सुन कर😢😢😢

#मन #आहत #है  टीवी चैनेलों पर बहस और दलीलों को सुन कर😢😢😢

चाहे तीन तलाक का हो या परित्यक्तता का
दलील चाहे जितनी भी दे दो पर जरा सोचो क्या बीतती होगी उस स्त्री पर , ऐसे परिवारों पर जिनकी बेटियां ऐसे हालात का शिकार होती हैं. इन हालातों पर बुद्धिजीवियों, नेताओं और धार्मिक उलेमाओं का बयान कितना अशोभनीय, अतार्किक, असंगत एवं न्याय विरोधी बयान दे पाना कैसे संभव हो पाता है???
वो स्त्री जो एक माँ ,एक बहन और एक पत्नी का रूप ले पुरुष के हर सम-विषम परिस्थितियों में अपनी परवाह किये बिना उसका साथ निभाती है , ऐसे में एक पुरुष का ऐसे तुच्छ बयानबाज़ी क्या निंदनीय नहीं. वो मां जिसने अपने बेटों को बनाने में ना जानें कितनी राते सोई ना हों ,शायद कितनी दफा यूँ भी गुज़रा हो जो रोटी का एक टुकड़ा पेट भरने को मयस्सर ना हुआ हो, अपने आँखों के आंसुओं को छुपाये हुए ,अपने दर्दों को सीने से लगाये हुए बस इस आस में जिंदगी गुजार देती है कि बेटा मेरा बड़ा आदमी बनेगा ,अपने अस्तित्व को पूरी तरह मिटा देती है , भला ऐसे उच्च विचारों को रखने वाली ,अपने असूलों आदर्शों पर चलने वाली स्त्री की मानसिकता छोटी ,अक्ल में पुरुषों के मुकाबिले में कम होती है, ये अक्स भला किस पैमाने पर नापी गई. इतना पढ़ाने लिखाने
और संस्कारों को बनाने में एक स्त्री ने अपना सर्वस्व कुर्बान किया पर ये महाराज लोग ऐसे अपने अहंग पर अड़े हैं और वही मनुवादी सोच.
कहीं ये बयानबाजियां लोकप्रिय होने का शॉर्टकट तो नही. जिन धार्मिक कट्टरपंथियों को खुदा का खौफ नही उससे न्याय की उम्मीद भी भला कैसे हो. घरों में अपने पाश्चात्य तहजीब को समेटे , मॉडर्न तकनीकी से परिपूर्ण ये लोग शायद दिमागी तौर पर भी आधुनिकता समेटे होते तो कुछ और बात होती.देश एक तरफ तो विज्ञान ,तकनीक और ना जाने कितनी ही स्टार पर तरक्की कर चला है पर स्त्रियों के मामले में वही दकियानूसी विचार! अपनी भावनाओं को क्या नाम डन समझ नही आता . सवाल फिर से वही _व्यक्ति देखा -देखी बहुत कुछ सीख जाता है पर मानसिकता को बदलने में सौ साल या उससे भी ज्यादा लग जाये ,ऐसा क्यों???
एक सवाल और _ एक स्त्री विधवा,परित्यक्तता और ना जाने ऐसे की विशेषणों को लेकर भी ता उम्र अकेले रह सकती है, अपने बच्चों का भरण-पोषण कर सकती है ,उसके लिए सोचने वाला शायद सिर्फ और सिर्फ उसके मां-बाप हों पर जब एक पुरुष इन हालातों में हो तो घर-परिवार और समाज भी उसका हमदर्द हो जाता है ,ऐसा क्यों????
आज जब कोर्ट में तीन तलाक के मसले पर बहस हो रही है तो क्या इस मसले पर भी दलील पुरुष वर्ग ही पेश करें.
और वह भी जब दलीलों में शर्मनाक बयानबाज़ी हो रही हो.
ये मसला हिन्दू और मुसलमानों का नही बल्कि सामाजिक मानसिकता है .ऐसी मानसिकता लेकर भला देश की तरक्की कैसे हो और समदृष्टि की भावना कैसे पनपे यह चिंता का विषय है.

अब जरा आप लोग ही समझाएं की कैसे #बेटीबचाओ' के पहल को सफल और साकार होते देखें.
@Ajha.12.05.17

Wednesday, 10 May 2017

कर्तव्य बोध

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Tuesday, 9 May 2017

Monday, 8 May 2017

माँ-बाप

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Saturday, 6 May 2017

हंसी

"हंसी"

तुम्हारी वो बातों का असर था
वो शोखियां , वो तबस्सुम और
फिर तेरा ये कहना कि चाँद जमीं
पर उतारूं भी तो कैसे
तुम्हें मैं चांदनी कहता हूं और फिर
खुद को चाँद समझता हूं
लो चाँद तुम्हारा जमीन पर उतर आया
फिर तेरा कहना_शहंशाह जो ना बन पाया
दुनिया तेरे कदमों पर लाऊं कैसे
तुम्हें बेगम बनाया अपना और खुद
शहंशाह बन बैठे
अब लो दुनिया कदमो में तेरे और मैं
हवाले तेरे
खुदा तलाश करता था बुतखाने ,काबा को
देखकर,ना हुई तलाश खत्म
तुझे खुदा अपना बनाया और काशी-काबा
दो जहां की मुहब्बत
तुम्ही से कर डाला , अब बताओ मेरी मंज़िल
आगे और है कहां तक !
इन्ही बातों की लब्बोलुबाब ऐसी थी
फिर कुछ न सूझी मुझे
जवाब में बस, मेरी
हंसी ऐसी निकली थी.
@Ajha.07.05.17