Thursday, 11 May 2017

दोस्ती

पल दो पल का
मिलना, फिर
शिनाख्तगी और फिर
हमशिनाख्त हो गए
अलबत्ता
ना था मालूम कि
दोस्ती एक एहसास है
इस कदर निभती कि
आगाज़ अजनबी सा
शिनाख्तगी फिर
हमशीनख्त और फिर
हमदान
साथ जो निभी तो
सफर में हमसफ़र,
हमकदम हो गए
ऐतबार जो हुआ
अहतरामी दोस्ती में आ गई
हमवफ़ा से हमराज़ और
ताल्लुक़ातों से
फिर हमनफ़स,हमदम
हो गए
बात जो आगे बढ़ी
जान और जानेजाना एक
दूजे के हो गए
दोस्ती की तिलिस्म ऐसी
की कुछ और ना सूझे
बस रहमत,रब और खुदा
ही दिखाई दे
या रब क्या खूब ये
नेमत अता की तुमने
दो जहां एक नज़र आते हैं
हर दोस्त आपके नाम
'आफरीन-आफरीन'
फरमाते हैं.
@Ajha.12.05.17

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