"हंसी"
तुम्हारी वो बातों का असर था
वो शोखियां , वो तबस्सुम और
फिर तेरा ये कहना कि चाँद जमीं
पर उतारूं भी तो कैसे
तुम्हें मैं चांदनी कहता हूं और फिर
खुद को चाँद समझता हूं
लो चाँद तुम्हारा जमीन पर उतर आया
फिर तेरा कहना_शहंशाह जो ना बन पाया
दुनिया तेरे कदमों पर लाऊं कैसे
तुम्हें बेगम बनाया अपना और खुद
शहंशाह बन बैठे
अब लो दुनिया कदमो में तेरे और मैं
हवाले तेरे
खुदा तलाश करता था बुतखाने ,काबा को
देखकर,ना हुई तलाश खत्म
तुझे खुदा अपना बनाया और काशी-काबा
दो जहां की मुहब्बत
तुम्ही से कर डाला , अब बताओ मेरी मंज़िल
आगे और है कहां तक !
इन्ही बातों की लब्बोलुबाब ऐसी थी
फिर कुछ न सूझी मुझे
जवाब में बस, मेरी
हंसी ऐसी निकली थी.
@Ajha.07.05.17
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