मुझे लगता है कि कुछ - कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं जो हमें इतने सुकून और इत्मीनान बख्श होते हैं कि हम यह सोच ही नहीँ पाते कि जिसके लिये हम ने एक जहाँ बना रखा है वो कहीँ रेत के मकान में तो नहीँ बैठा . इसलिये ज़रूरत हमेशा इस बात की होती है कि रिश्ते में ताजगी बनाई रखी जाये , उसे बासी होते ना छोड़ा जाय . रिश्ता जिसे हम बहुत मज़बूत मान बैठते उसकी एक सच्चाई यह भी है की वह उतनी ही नाजुक भी होती है जिसका हमें ख़याल रखना चाहिये , वरना रिश्ते की नींव हिल जाती है . शायद शायर ने भी इस स्थिति को महसूस किया हो और चंद अल्फाज अनायास ही निकल आये हों _
हम को उन से वफा की है उम्मीद
जो नहीँ जानते वफा क्या है
- - - मिर्ज़ा ग़ालिब .
या फ़िर यूँ कहे _
ना गुल खिले , ना उन से मिले , ना मै पी है
वो बात सारे फसाने में जिसका जिक्र ना था
वो बात उनको नागवार गुजरी है .
- - - - - फैज अहमद फैज.
@ Ajha . 26. 02. 16
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