Monday, 14 March 2016

क्या अधिकार दूँ

क्या अधिकार दूँ कि लब खामोश हो गये
इन जज्बात की बातों में अल्फाज कहीँ गुम हो गये
ऐ वक्त ज़रा तू भी तो ठहर कि
इक पल को ज़रा मैं भी तो जी  लूँ .

कभी यूँ भी होता गुजरती मैं उन गलियों से
जो पस - मंजर मैं यार होता

इक पल को ही सही
मुझे उनका दीदार होता

ना फ़िर होतीं कोई जिंदगी में चाहते
इबादतगाह ही फ़िर मेरा राह होता

ना फ़िर कोई चाह नेमतों की
ना फ़िर कोई राह जेहमतों की

ना कोई लम्स चाहिये , ना कोई तिशनगी कोई
ना आरायिश ही कोई

फ़कत इक पल का दीदार , इक इजहार
और इक ख़याल कि इसी हाल में
सुपुर्दे खाक हो जाता  .

माँ

Tasveer per sher
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Naa tha ilm  ahsaas - e - maadri kaa
Chu banti nahi agar mai maa
Yaa ilaahi tune kya khub nemate di
Jo mujhe is jamee pe maa se navaazaa .
@ Ajha . 10. 09. 16

ना था इल्म अहसास- ए- मादरी का
चूं बनती नहीँ अगर मैं माँ
या इलाही! चे खूब तूने नेमतें दीं
जो इस जमीं पे मुझे  माँ से नवाजा .
_ Aparna Jha

Thursday, 10 March 2016

ना माँगी थी सलाह . . . .

ना माँगी थी सलाह कोई उससे
ना ही थी कोई शिकायत ऐ हमसफ़र
फ़कत इक नज़रें इनायत की दुआ की थी
रुस्वा इस क़दर मुझ से वो क्यों हो गया .
@ Ajha . 09. 03. 16

Na thi mangi salaah koi usse
Na hi thi koi shikaayat ai hamsafar
Fakat ik nazre inaayat ki duaa ki thi
ruswa is kadar mujh se wo kyo ho gaya .
Aparna Jha

जो चमन था उजड़ा . . .

कल तक जो लगता था चमन कुछ उजड़ा सा
आज कुछ बहार आने लगी
महबूब की कुछ इस तरह से  हुईं नज़रें इनायत
सारे जहाँ में इक नूर सी पैदा हो गई .
@ Ajha 10. 03. 16

शेर : वो जो तेरे ख़त पे . .

वो जो तेरे ख़त पे था इक गुलाब
खुदा गवाह , कि मैंने तुझे महसूस किया .
@ Ajha . 10.03. 16

ये सच है कि . . . .

ये सच है कि हर रंग में देखा मैंने
फ़कत आरजू - ए - दीदार - ए - तमन्ना तेरी .
एक मुजस्सिमा बनाया था
काली घटाओं में  तेरी जुल्फें थीं
गुलाबी तेरे लबों का रंग
हवाओं से आई थी तेरी सौंधी सी खुशबू
दो नैना थे जैसे झील में कमल
सफ़ेद पोशिदा थे जब भी तुम
इत्तफाकन किसी जन्नत की हूर थे तुम
ये झील सी गहराई , ये समंदर सी रानाइ
ऐ खुदा पाक !
किस मिट्टी से तूने ये तस्वीर बनाई  . @ Ajha 10. 03. 16

Wednesday, 9 March 2016

हिचकियां . . .

हिचकियां आईं थीं मुझको
हाँ , शायद वो फ़िर मुझको याद आया .
कहा करता था मुझसे , अब क्या लिखूं मैं कविता
कल्पना में मेरी जो थीं बसती, वो मुझे था मिल गया
मेरा औचित्य तुम्हीं हो
मेरा जीवन आधार तुम्हीं
तुम्ही वो धूरी जिस पर कर रहा परिक्रमा
नहीँ कुछ मुझको समझ आता
ये ज़िंदगी भली या वो जो थी मृग तृष्णा
आज मेरी ज़िंदगी के मायने बदल गये
कहता जो वो कलतक वो मुझ से था
वही आज हो गई जीवन का  मेरे  हिस्सा
कलतक जब ना था वो पास मेरे
ना थी मेरी ये कविता
आज जब है दूर वो मुझसे
जीवन मेरी बन गई है कविता
लोगों से अब पूछती फिरूँ _
क्यों जुदाई का सबब है ऐसा
सारी दुनियाँ हो जाती है एक तरफ़
इक वैरागी ही क्यों रह जाता तन्हा
ऐ दुनियाँवालों क्यों है इश्क- o- इंसानियत से गुरेज
इक बार कभी हँस के , मुस्कुरा के तो देख
इतने दुखों का सरमाया लेकर क्या जाना
रोते हुए आये थे , हँसते हुए ही है जाना . @ Ajha . 09. 03. 16

ये बादे बहार . . .

ये बादे - बहार ,
ये रुस्वाइयों का आलम
काश के आँखों से आँखें मिल जातीं 
होता है कैसा वो आलम हम भी ज़रा देख लेते .
हाँ बहारें आईं थीं , संग खिजां भी लाई थीं
ऐ दोस्त बहारों को इलज़ाम ना देना 
मौसम ही तो था , अपनी खुशियाँ दे गया
ये भूल थी हमारी के संग उसके बह निकले
ये नज़रों की अदला - बदली
वो ख़ुशी ओ ग़म की आँख मिचौली
रंगत भी है कुछ जुदा - जुदा
माहौल भी कुछ भरा - भरा
फ़िर चहुं ओर पसरा ये सन्नाटा  क्यों है
लगता है फ़िर किसी  की मौत हो गई
वो तो गहरी नींद सो गया पर
फ़िर से जहान खुशियों में तब्दील हो गई
एक फ़कीर तन्हा जो आया था 
आज सुपुर्दे खाक हो गया .
@ Ajha .06. 03. 16

Happy Women's Day

Happy Wemen's Day
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ईरान में 1941 में रज़ा शाह पहलवी के समय में जो क्रांति वहाँ के समाज में हुई थी उसने समाज में  कितनी ही अमिट निशानियाँ छोड़ीं  . एक रूढ़िवादी समाज जो ना जाने कितनी ही समस्याओं से जूझ रहा था, उसके बदलाव के लिये वहाँ के साहित्य , कला , संस्कृति ने ना जाने कितनी ही भावपूर्ण और जागरुकता से भरे संदेश लोगों तक पहुंचाये होंगे . इनमें अनेकों विषयों के संग नारी की समस्याओं को बेहद खूबसूरत तरीके से उठाया गया था . ना जाने क्यों आज आप सभी मित्रों के साथ साझा करने की दिली इच्छा हो रही है , तो आप भी पढियेगा . लेखक का मुझे नाम याद नहीँ आ रहा , तक़रीबन 20 साल पहले मैं ने पढ़ा था . _

रबड़ की गुड़िया
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                एक व्यक्ति थे  x . पढ़ने में बहुत ही प्रतिभावान . उनकी इस प्रतिभा को देखते हुए परिवार वालों ने उसे उच्च शिक्षा के लिये पश्चिम के देश भेज दिया . वहाँ भी उसने अपनी प्रतिभा के बल पर ऊंचाईयां छूने लगा . इस बीच उसमें एक बदलाव आने लगा था .  नित्य बाज़ार जाने के क्रम में उसे एक दुकान में रखी एक गुड़िया आकर्षित करने लगी . उसके दिलो- दिमाग़ पर इस गुड़िया ने घर बना लिया था कि अब श्री x ने घर लाने के लिये मुँह माँगा रकम अदा किया . इस तरह अब उसकी एकाकी जीवन की समाप्ति हो गई . अब वह गुड़िया के संग अपनी सारी बातें करता , हँसता , खुश रहता . बदले में गुड़िया सदैव एक मुस्कान पर कायम रहती .
                  अब उसके जीवन वो समय भी आ गया की उसकी चाह जीती - जागती गुड़िया की होने लगी . बस फ़िर उसने एक उतनी ही सुंदर और विदुषी महिला के संग विवाह किया. अब तो उसके ख़ुशी का ठिकाना ना रहा . साल गुजरा , श्रीमानजी की इच्छा हुई कि उसे मुँह - माँगा तोहफ़ा दें . . पत्नी ने कहा कि भगवान की दया से आपने दुनियाँ का कोई ऐसा सुख देने को बाँकी नहीँ रखा जिसे की पैसे में ख़रीदी जाय . अब मेरी कोई ख्वाहिश बाँकी नहीँ रही .
श्रीमान ने जिद्द कर दी , वह यह भूल गया था कि पत्नी सुन्दर होने के संग विदुषी भी थी . पत्नी ने मौके का फ़ायद उठाया और कह पड़ी , आप से मुझे कोई भी दुनियावी चीजों की ख्वाहिश तो नहीँ पर आप देना चाहते हैं तो इतना करें कि मुझे खुले आकाश तले साँस लेने की इजाजत हो और इस कैदखाने से मुक्त करें .  इतना सुनते ही जनाब गुस्से में बौखला गये , वो एक दिन था जब से उन्होंने अपनी पत्नी की सूरत पलट के नहीँ देखी , साथ ही वह गुड़िया
जो कभी चैनो- करार हुआ करती थी उसे भी ऐसा बदहाल कर दिया की दुबारा से उसे जोड़ने की कोई सूरत ही नहीँ हुई .

निचोड़ : इस कहानी का निचोड़ पाठक खुद से निकालें .
_ _ @ Ajha 08. 03.16

जिंदगी के किस्से भी . . .

ज़िंदगी के किस्से भी कुछ अजीब  होते हैं
ये दिल के क़रीब और हर दिल अजीज होते हैं
कल जब वो पास था मेरे , ना थी तब मेरी कविता
आज जब वो दूर है मेरे , मेरी जीवन है इक कविता .@ Ajha . 09. 03. 16

मैं भी तो इंसान . . .

लोग क्यों इस बात से खुश हो रहे कि
कोई मुझे अपनी राहतें देता
कोई मुझे अपनी चाहतें देता
भगवान बन बैठा है यहाँ कोई
मैं भी तो इक इंसान हूँ तेरी जैसी
फ़िर बता तू ही , राह कौन सी है मेरी .
@ Ajha . 09. 03. 16

ना माँगी थी _kattaa

ना माँगी थी सलाह कोई उससे
ना ही थी कोई शिकायत ऐ हमसफ़र
फ़कत इक नज़रें इनायत की दुआ की थी
रुस्वा इस क़दर मुझ से वो क्यों हो गया .
@ Ajha . 09. 03. 16

Na thi mangi salaah koi usse
Na hi thi koi shikaayat ai hamsafar
Fakat ik nazre inaayat ki duaa ki thi
ruswa is kadar mujh se wo kyo ho gaya .
Aparna Jha