Happy Wemen's Day
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ईरान में 1941 में रज़ा शाह पहलवी के समय में जो क्रांति वहाँ के समाज में हुई थी उसने समाज में कितनी ही अमिट निशानियाँ छोड़ीं . एक रूढ़िवादी समाज जो ना जाने कितनी ही समस्याओं से जूझ रहा था, उसके बदलाव के लिये वहाँ के साहित्य , कला , संस्कृति ने ना जाने कितनी ही भावपूर्ण और जागरुकता से भरे संदेश लोगों तक पहुंचाये होंगे . इनमें अनेकों विषयों के संग नारी की समस्याओं को बेहद खूबसूरत तरीके से उठाया गया था . ना जाने क्यों आज आप सभी मित्रों के साथ साझा करने की दिली इच्छा हो रही है , तो आप भी पढियेगा . लेखक का मुझे नाम याद नहीँ आ रहा , तक़रीबन 20 साल पहले मैं ने पढ़ा था . _
रबड़ की गुड़िया
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एक व्यक्ति थे x . पढ़ने में बहुत ही प्रतिभावान . उनकी इस प्रतिभा को देखते हुए परिवार वालों ने उसे उच्च शिक्षा के लिये पश्चिम के देश भेज दिया . वहाँ भी उसने अपनी प्रतिभा के बल पर ऊंचाईयां छूने लगा . इस बीच उसमें एक बदलाव आने लगा था . नित्य बाज़ार जाने के क्रम में उसे एक दुकान में रखी एक गुड़िया आकर्षित करने लगी . उसके दिलो- दिमाग़ पर इस गुड़िया ने घर बना लिया था कि अब श्री x ने घर लाने के लिये मुँह माँगा रकम अदा किया . इस तरह अब उसकी एकाकी जीवन की समाप्ति हो गई . अब वह गुड़िया के संग अपनी सारी बातें करता , हँसता , खुश रहता . बदले में गुड़िया सदैव एक मुस्कान पर कायम रहती .
अब उसके जीवन वो समय भी आ गया की उसकी चाह जीती - जागती गुड़िया की होने लगी . बस फ़िर उसने एक उतनी ही सुंदर और विदुषी महिला के संग विवाह किया. अब तो उसके ख़ुशी का ठिकाना ना रहा . साल गुजरा , श्रीमानजी की इच्छा हुई कि उसे मुँह - माँगा तोहफ़ा दें . . पत्नी ने कहा कि भगवान की दया से आपने दुनियाँ का कोई ऐसा सुख देने को बाँकी नहीँ रखा जिसे की पैसे में ख़रीदी जाय . अब मेरी कोई ख्वाहिश बाँकी नहीँ रही .
श्रीमान ने जिद्द कर दी , वह यह भूल गया था कि पत्नी सुन्दर होने के संग विदुषी भी थी . पत्नी ने मौके का फ़ायद उठाया और कह पड़ी , आप से मुझे कोई भी दुनियावी चीजों की ख्वाहिश तो नहीँ पर आप देना चाहते हैं तो इतना करें कि मुझे खुले आकाश तले साँस लेने की इजाजत हो और इस कैदखाने से मुक्त करें . इतना सुनते ही जनाब गुस्से में बौखला गये , वो एक दिन था जब से उन्होंने अपनी पत्नी की सूरत पलट के नहीँ देखी , साथ ही वह गुड़िया
जो कभी चैनो- करार हुआ करती थी उसे भी ऐसा बदहाल कर दिया की दुबारा से उसे जोड़ने की कोई सूरत ही नहीँ हुई .
निचोड़ : इस कहानी का निचोड़ पाठक खुद से निकालें .
_ _ @ Ajha 08. 03.16