ये सच है कि हर रंग में देखा मैंने
फ़कत आरजू - ए - दीदार - ए - तमन्ना तेरी .
एक मुजस्सिमा बनाया था
काली घटाओं में तेरी जुल्फें थीं
गुलाबी तेरे लबों का रंग
हवाओं से आई थी तेरी सौंधी सी खुशबू
दो नैना थे जैसे झील में कमल
सफ़ेद पोशिदा थे जब भी तुम
इत्तफाकन किसी जन्नत की हूर थे तुम
ये झील सी गहराई , ये समंदर सी रानाइ
ऐ खुदा पाक !
किस मिट्टी से तूने ये तस्वीर बनाई . @ Ajha 10. 03. 16
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