घटा मन भावन
अति सुहावन
मन हुआ चितचोर
चाँद भी ढूंढे चकोर
लगे अति पावन
बड़ा लुभावन
दादुर नाचे
लगे सुख पावन
भीगे तनमन
नदी बीच धारे
बजे जलतरंग
बैठ संग तुम्हारे
नदी किनारे
शर्माते,नैना झुक जाते
शांति सी छाई
बहे शीतल पवन
नैना करे इशारे
अंतर्मन तुझी को पुकारे
करना चाहे तुझी से बतियाँ
प्रिय!अब कुछ तो कहो
मेरे मन की
हारी मैं हारी
होके तिहारी
बस जान जाओ मन की मेरे
जीवन अपना है अब ऐसा
मैं तेरी राधा बन
तूँ मेरा है मुरली बजैया
तुम छेड़ो अब तान
मैं तेरी धुन बन
जीवन तर जाऊँ
पार उतर आऊं
प्रिय ! सुनो ना मेरे मन की बात.
प्रभु ! सुनो ना मेरे मन की बात.
@Ajha.17.06.17
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