"कलमऔर हुनर"
---------------------
कभी कलम ने मेरी नाफरमानी लिख दी
कभी हुनर ने मेरी गुमनामी लिख दी
खैर ख्वाह तो हैं दोनों ही मेरे
पर नज़रों की ये कैसी गुस्ताखी कि
दरमियान इनके गलतफहमियां कर दी
दिखते तो दोनों एक से
पर एक ने बेवफाई लिख दी
और एक बावफा हो गई
बदले तो थे अंदाज़ दोनों के
कोई खुश गुमा तो कोई बदगुमा
नुमाया हो चला
सूरत तो थे जुदा उनके
सीरत एक सी ही थी दिख रही
कोई ख्याल बन दिल में बस गया
कोई अलफ़ाज़ बन कागज़ पर उतर गया
कलम बारहा लिखता गया
गलतफहमियां बढ़ती गई
ये तो हुनर ही था
जो काँटों में दामन बचाते गए
पर क्या कहे हम इनपे
ना कमतर ना बेशतर कोई इनमें
हैं दोनों की महदुदियत ओ मखसुसिययत(importance individuality)
होती इंतिहाई घड़ियों में ही इनसे
वाकिफियत.
@Ajha.27.10.16
Thursday, 21 June 2018
कलम और हुनर
सोच श्रृंखला
सोच श्रृंखला
"श्रृंखला सोच की"
----------------------
हर बात से निकलती है
इक बात नई
इक जज़्बात नई
अच्छी और बुरी भी
वो जो अच्छा था किसी के लिए
वही बुरी गुजरे ना औरों के लिये
फिर होंगे इसके कई आयाम नए
और निकलेंगे इसके कई अंजाम नए
इक वक्त नया फिर से आएगा
कई नए हालात पैदा कर जाएगा
इंसान के अंदर से फिर
इक नया इंसान रहनुमा होगा
और ये दुनिया जो
वादों-विवादों में उलझी रहती हरदम
इक 'वाद'(ism) फिर से नया होगा
इसी सोच पर फिर
इक इंकलाब खड़ा होगा
जिस सुबह का था इन्तजार अबतक
आखें खुली ,ख्याल कुछ ऐसा होगा
यही श्रृंखला सोच की,जिस पर
नित्य समाज अग्रसर हो रहा होगा.
@Ajha.25.07.16
आवारगी
"आवारगी "
---------------
तलाश में एक राह की
पहुँच चुकी है वहाँ ज़िंदगी
तंहाइयों में भी है इक खुशी
अनजानी सी राह भी हो चली अपनी
कितनी आसां सी है हर मुश्किल
ना सोचना अब हल ठोकरों का
मसायिलों को खुद-बा-खुद राह दिखने लगी
ना रही अब कोई मुश्किल
ना कोई अब मुजीर (harmful)
ना मुँहताज़ी ही (needy)
ना ही है महदूदियत (limitation)
ना हि मुहाफिज कोई यहाँ
ना अब कोई मसखरी (ridiculous)
बस मुत्तफिक हूँ
मुत्तहिद , मुतमईन
आरायिशे दिल
ना कोई तिश्नगी
बस है महफूजियत
इक मौसिक़ी है मिल गई
ममनून हूँ , ऐ ज़िंदगी !(thankful)
कि अब मैं हूँ और मेरी
आवारगी.@Ajha 31.05.16
* आवारगी यानी रोज़मर्रा की ज़िंदगी से अलग शायर जो अपने लिये एक दुनिया तलाश लेता है
और वही अब उसकी ज़िंदगी हो.
धमकियाँ
धमकियां
जीवन धमकियों से भरी एक दास्तान
आज तक धमकियों को ही तो जिया है इंसान
क्या कभी सोच पाए कि प्यार से भी बातें होतीं हैं पूरी
कलतक जिस माँ-बाप ने यह ना सोचा कि
प्यार पाने के लिए प्यार जताना भी होता है
पति-पत्नी का प्यार,माँ-बाप का आपसी सौहार्द
जान लीजिये, बच्चे जो देखते हैं
मन में उनके वही भाव पनपते हैं
आपस में जो प्यार और सम्मान जताया होता
याद रहे परिणाम में ये वृद्धाश्रम ना आया होता
बच्चों को पैसा कमाना ही शिक्षा बता कर
जो बचपन ना तरसाया होता
तो होते नही ये दागी नेता और
समाज ना कभी धमकियों से किसी के डरा होता
ना हि होते बिगड़े होते इतने हालात
अब तो संभल जाएं हम करके धमकियों को दरकिनार
अनुभूति बस यही रहे
जहाँ में है प्यार ही प्यार.
अपर्णा झा