सोच श्रृंखला
"श्रृंखला सोच की"
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हर बात से निकलती है
इक बात नई
इक जज़्बात नई
अच्छी और बुरी भी
वो जो अच्छा था किसी के लिए
वही बुरी गुजरे ना औरों के लिये
फिर होंगे इसके कई आयाम नए
और निकलेंगे इसके कई अंजाम नए
इक वक्त नया फिर से आएगा
कई नए हालात पैदा कर जाएगा
इंसान के अंदर से फिर
इक नया इंसान रहनुमा होगा
और ये दुनिया जो
वादों-विवादों में उलझी रहती हरदम
इक 'वाद'(ism) फिर से नया होगा
इसी सोच पर फिर
इक इंकलाब खड़ा होगा
जिस सुबह का था इन्तजार अबतक
आखें खुली ,ख्याल कुछ ऐसा होगा
यही श्रृंखला सोच की,जिस पर
नित्य समाज अग्रसर हो रहा होगा.
@Ajha.25.07.16
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