"तुम लिखते कहानी..."
(एक सूफी ख़याल)
बात जो छेड़ी है तुमने
कि लिखते तो क्या लिखते
कहानी जो रही अधूरी
उन पर अपनी छाप क्या लिखते
तो सुन लो आज मुझ से
कहानी जो लगती है
अधूरी ही तुम्हें दिखती
शायद इन नज़रों से
देखा नही मैंने कभी
तो सुन लो आज मुझ से
जिसे मुहब्बत मान बैठे
वो मुहब्बत मेरे लिए
थी ही नही कभी
तुम तो मुहब्बत में बंध गए
और कैदियों-से सोचने लगे
क्या मुहब्बत घड़ी की सुइयां हैं
या रात और दिन का खयाल
या बदलते मौसम की निशानदेही
या समुद्रतट पर बैठे संग रहना
या पहाड़ों पर हो खड़े
पर्वतश्रृंखला ढूंढना
तो आज सुन लो मुझ से भी
जो कहानी तुझे अधूरी सी लगी
और नज़रों में तेरे खटकने लगी
वो कहानी तो मेरी जिंदगी है
वो तो मेरे जीने का ढाल है
वही मेरे उस मंज़िल तक
पहुंचने का रास्ता भी
ये अधूरी कहानी बेशक
तुझे पूरी ना लगे
वो जो अधूरा तुझे है दिखने लगे
वही तो मेरे जीवन का मर्म है
वही तो मेरे जीवन का धर्म है
वही तो तर्क मेरा
वही संगत मेरी
वही है रूह मेरी
वो जो अधूरा सा तुझे दिखता है
वो मेरी पाकीजगी का हिस्सा है
वो जो अधूरा सा अब लगे
वो मेरी मोहब्बत का नशा है
वही मेरी मोहब्बत की रवानगी है
वही मेरी मोहब्बत की दीवानगी है
वही मेरा मंदिर,खुदा भी
वही मैखाना
वही मर्ज़े इलाज
ये मेरी मोहब्बत की पाकीजगी ही
ना ख्वाहिश इंसानी रिश्तों
और जज़्बात की कभी
ना मुझे दर-बा-दर खुदा की तलाश
ना किसी से कैसे,कोई का
सवाल ओ जवाब
वो दुनिया ये दुनिया
ये ज़मीन वो आसमान
मेरी जन्नत भी यही
जहन्नुम कहीं नहीं
अब कहो किस अधूरी कहानी
की बात करते हो
तुम नहीं जानते कि
मेरा प्रेम मुझसे
अपनी अपूर्णता में पूर्णता देखता है
और पूर्णता को अपूर्ण मान
अपनी जीवन को नित्य
संवारता है.
Aparna Jha