मौसम,सगाई,शहनाई
या कहूँ तीनों का जोड़ है जीवन
क्रांतिकारी यदि मन हो और
कुछ करने की उमंग हो
हर मौसम पतझड़ और
बसंत हो जाता है
सगाई 'लक्ष्य' से और
शहनाई बिगुल बन जाता है
हाँ एक मौसम हमने भी
देखा था ऐसा
हरीतिमा ही चहुँ दिशा दिख आई थी
समाज बदलने की जैसे
कोई शपथ ही हमने खाई थी
खून गर्म था, तूफानों से लड़ने का
जोश अटल था
झंडा अपना हम फहराएंगे
ऐसा विवाह हम रचाएंगे
क्या पता था
माँ-बाबूजी का पैगाम भी आना था
माया-मोह ने फिर से
मुँह चिढ़ाना था
बेटी अब समय बहुत हो चला है
अब तेरा बाप बूढ़ा हो गया है
तेरे हाथ भी पीले करने हैं
कर्तव्य ना रह जाए अधूरी
भगवान के घर भी जाना है
अब सबकी तरह मुझे भी सोचना था
मौसम, सगाई, शहनाई का समाज नहीं
परिवार के स्तर पर
महत्व कितना था
कर लिया हाथ मैंने भी पीले
और कर लिया समझौता क्रांति से
अब खुद में ही जीती हूँ
खुद की सोच में मदद को
हाथ खुले रखती हूं
मौसम खुद का अब भी हरीतिमा है
अब अपनी सोच को संतति में भरना है
हाँ,महत्व है इन सबों का...
ये मौसम,सगाई और शहनाई
ये खुशियां है,आशा,चेतना और सपने हैं
यथार्थ यही कि जीवन यात्रा में
सभी एक दूसरे से बंधे हैं,
एक दूसरे से बन्धें हैं.
अपर्णा झा
Saturday, 28 July 2018
मौसम,सगाई,शहनाई,जीवन
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment