हे अंगूठे महाराज!
कब क्या तूँ किसको कह दे
होता नहीं अब तुझ पर विश्वास.
पहले युद्धक्षेत्र था और वीरता को ललकार
और जो हारे तो दिखा अंगूठा
किया हार को धिक्कार
नीचा दिखाना हो तो अंगूठा
हो जाता था ठेंगा
झूठ जरा भी बोले तो पड़ जाए
अंगूठे रूपी डंडा
शिक्षित देश हुआ जो, तो
अशिक्षितों की बैसाखी ये अंगूठा
देखो वक्त ने कैसा खाया
है अब पलटा...
अंग्रेजी का बोलबाला
आधुनिक बनने की है अभिलाषा
बात-बात पे शान जताना
होगा तब तुम्हें अंगूठा दिखलाना
अब तो मुखपोथी भी साहब
मांग रही अंगूठा
कोई बात यदि हो टालनी
मुस्कुरा कर दिखा दो अंगूठा
और बिगड़ी बात से
जान छुटा लो दिखा कर अंगूठा
बड़ा रहस्यमयी लगे मुझे अंगूठा
कभी-कभी तो शक यह हो जाये
शायद ये नहीं है अपना अंगूठा
कहाँ तो शिक्षा और तकनीक में
खुद प्रगतिशील समझते
पर सरकारी कागज हो या
कारोबारी दफ्तर
बॉयोमीट्रिक्स का नाम दे
वही पुराने युग का
'अंगूठा छाप' का परिचय
अब हम दे रहे.
अंगूठे का महत्व है कितना
ये शिक्षा ने हमें सिखाई
या वक्त ने दिया हमें जब धोखा
तब बात समझ में ये आई.
अपर्णा झा
Saturday, 28 July 2018
अंगूठा
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