इतनी निराशाओं के साथ जिंदगी को जिया तो क्या जिया ???भ्रांतियों में जीना और फिर कहना कि माहौल खराब है...!!! जिन्होंने यह लिखा और उसे सामाजिक पटल पर रखा तब वह असुरक्षित नहीं हुए,उनकी जान किसी ने नहीं ली तो फिर ऐसे लेखन से समाज को डराना कैसा!!!मैं समझती हूं देश को बदनाम करने की एक साजिश छोड़ और कुछ भी नहीं…
आप नाम से असुरक्षित हैं, जीना चाहते हैं तो जाकर उस स्त्री के जीवन चरित को जानिये जो अपने माँ-बाप को हंसता देखने के लिये सदैव अपनी आहुति देती रहती है,परिवार बनाने हेतु उसने खुद को भुला दिया और जब परिवार बना दिया तो बच्चे पूछते हैं कि तुम कौन? और फिर भी जीना नहीं छोड़ती,अपनी निराशा नहीं दिखाती, क्योंकि तब भी मां को अपने माँ और स्त्री होने का खयाल रहता है,वो जीना,हंसना और आशीर्वाद देना नहीं छोड़ती कि भले ही उसका जीवन खुद की आहुतियों में गुज़रा हो, पर इस ख़याल से की बच्चे उसके जीवन को देख उसके जीवन के बाद भी संस्कारवान हो जाएं तो भी उसका स्त्री जन्म सफल हो जाएगा.
हम कितने असहिष्णु हो चुके हैं कि छोटी-छोटी बातों पर उबाल खाने लगते हैं....!!!!
अपर्णा झा
*माफ़ कीजियेगा यहाँ अपवाद की बात को अलग रखा है.
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