"मौसम"
मौसम की खूबसूरती को देखो
बदलते रंगों के इंद्रधनुष को देखो
इसमें मिज़ाज़ों की नजाकत भी है
और नफासत भी
बेरुखी भी मिलेगी और जुदाई का सबब भी
जीवन चक्र की मानिंद है ये मौसम
कोई रूठा है,यदि प्यार है तो फसल
देगा ही...
बंजर होगी जो जमीन,उससे उम्मीद कैसा!!!
सावन का मौसम,हरियाली और कुछ
फुहार चहुं ओर...
मैं तो चली रूठे प्रियतम को मनाने
देखो सखियाँ,तुम ना रूठना
ज्यों तो रूठे, मौसम बदल जायेगा
और,फिर इन्तिज़ार ही इन्तिज़ार
रह जायेगा
सच यही कि इन्तिज़ार की
उम्र होती है लंबी, शायद
नाख़तम होने की फितरत भी....
आओ मैं मनाती हूँ
देखो,फिर ना कभी रूठना,
ना रूठना.
अपर्णा झा
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