प्रेम
किस प्रेम की है तुझको आस ,
तुम्हीं बताओ मुझ को आज .
प्रेम किसे तुम कहते हो ,
वो जिस वासना में डूबा संसार ?
जो लिखे हुए दीवारों - दरख्तों पर आज ?
या प्रेम तुम्हें वो लगती है , जो
भरी पड़ी है वरकों में , अल्फाजों में अफरात?
दुनियाँ का तुम भरम ना पालो ,
माया - जाल के भँवर में फँस ना जाओ .
सच्चा प्रेमी ऐसा है ,
संग चले दुनियाँ के ,
पर अन्दर उसके खुदा है .
पानी जैसा निर्मल है वो ,
आकाश के जैसी सोच
दुनियाँ का वो सबसे प्यारा ,
खुद के लिये तन्हाई उसकी संगी है .
पर याद करो जो उसको
चेहरे पे मुस्कान- सी छाई है .
यही हकीकत प्रेम की
इसे ही प्रेम माना है.
ऐसे ही संग में जीवन बिताना है@ Ajha . 27. 01. 16
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