Monday, 22 August 2016

प्रेम

प्रेम

​किस प्रेम की है तुझको आस , 
तुम्हीं बताओ मुझ को आज . 
प्रेम किसे तुम कहते हो ,

वो जिस वासना में डूबा संसार ? 
जो लिखे हुए  दीवारों - दरख्तों पर आज ? 
या प्रेम तुम्हें वो लगती है , जो 

भरी पड़ी है वरकों में , अल्फाजों में अफरात? 
दुनियाँ का तुम भरम ना पालो , 
माया - जाल के भँवर में फँस ना जाओ . 

सच्चा प्रेमी ऐसा है ,
संग चले दुनियाँ के ,
पर अन्दर उसके खुदा है . 

पानी जैसा निर्मल है वो , 
आकाश के जैसी सोच
दुनियाँ का वो सबसे प्यारा , 

खुद के लिये तन्हाई उसकी संगी है . 
पर याद करो जो उसको
चेहरे पे मुस्कान- सी छाई  है . 

यही हकीकत प्रेम की
इसे ही प्रेम माना है.
ऐसे ही संग में जीवन बिताना है@ Ajha . 27. 01. 16

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