करना है कई प्रश्न उस निराकार ईश्वर से ,
उस कर्ता - भर्ता- हर्ता से ,
लड़ूं मैं किससे अपने वजूद को .
जब सब सुख में तुम्हीं समाये हो , तो
दु:ख का कारण क्यों हम इंसान बने .
रिश्तों में तो हमने खुद को ढाला तो
फ़िर खून का क्यों हम इलज़ाम लें .
धरा पड़ी है जल्लादों से, सैयादों से ,
बैठे हो तुम मूक - बधिर से , फ़िर ,
क्यों हम तुमको भगवान कहें .
डोर जो थामे रखा है कठपुतलियों का
क्यों हरदम नचाते हो , क्या
तुम्हें रास आता नहीँ दो पल सुकूनो- आराम का .
@ Ajha .
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