Friday, 15 January 2016

मैं और मेरा आईना

आईना
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वो जो था मेरा आईना  , बैठी हूँ उसके पास मैं .
वही आईना जो कभी मेरी मासूमियत पे हँसता होगा .

यादें वो माँ की मार का , पिता के प्यार का
वो चोटियों को प्यार से गूंथना
नये कपड़े में खुद को निहारना ,

सब कुछ तो दिखता था ,
कितना प्यारा था वो आईना .

ये तो आईना ही था जो ग़म और खुशियों को
इतनी करीबी से निहारता , और फ़िर
मुझ से ही मुझे पुचकारता .

जवानी में आईने के मायने बदल गये
कभी इससे प्यार हुआ तो कभी
नफ़रत बेहिसाब हुआ .

जितनी भी बातें थीं , वो सब
आईने को ही तो थीं बतानी , कभी इसे
वफादार कहा , तो कभी ये धोखेबाज़ हुआ .

अब जब बैठी हूँ उसी आईने के सामने ,
कितना कुछ बदल गया ,इतने बसंत जो हम साथ थे , ना पूछो क्या हाल हुआ .
अब तूँ ही बता आईना _

" क्यों ऐसी विरक्ति मेरा तेरे साथ हुआ " .@ Ajha .

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