Wednesday, 29 June 2016
Saturday, 25 June 2016
Friday, 24 June 2016
माँ-बाप
राजा हुए, संत हुए ,मुनि और ज्ञानी
माँ-बाप बिना सब की अधूरी है कहानी
सार-तत्व भी यही मेरे भी जीवन का
पर याद है वो सब बीते हुए पल का
बेकार गई सब सोच मेरी, जो
बचपन से था अबतक पाला
मेरी माँग और उस पर थप्पड़ की गूँज
बगावत करना मुझे खुद से ही आ गया
आपलोगों पर बड़े परिवार का बोझ था
पर ममता आपकी कभी हमारे लिए ना
कमजोर थ
जो ख्वाहिश ना होती पूरी मेरी तो
गुस्सा भी मेरा बेजोड़ था
हमेशा सोचती, आप से अच्छा दूंगी
मैं बच्चे को प्यार
पर यह नही थी जानती, ममता नहीं होती
पैसों की मोहताज़
आज जो पैसे पर बिकती ममता
हर अमीर का बच्चा ही आगे निकलता
निश्चित माँ-बाप ने दिए होंगे संस्कार कुछ अच्छे
जो गरीबों के बच्चे भी आगे हैं निकलते
आज भी हमने जो सोच में
मजबूती है पाई
निश्चित ही इसमें है आपलोगों की करिश्माई
बहुत ही आजमाइशों का दौर है बच्चे पालना
बन गए तो गंगा पार और नहीं तो
कुछ और. पड़ता है झेलना
उम्र भर की कमाई दांव पर लग जाती
ज़रा सी इक ईंट हिली और परिवार की नींव
हिल जाती
आज मैं भी खड़ी हूँ उसी मकाम पर
खुशनसीब हूँ आशीष है आपका मुझ पर
नहीं है कूवत मेरी आपको कुछ कहने की
अब सही मायने में है मुझे एहतराम आपकी.
@Ajha.
Thursday, 23 June 2016
दिवस चक्र
http://wp.me/p7Dq43-S
दिवस चक्र
दिन-भर की थकान थी
रात बिस्तर पर लेटी हुई
आँखें अधखुली नींद से भरी हुई
दिन- भर का लेखा- जोखा कर रही
तन्हाई मेरे साथ थी
अमावस की वो घुप्प अँधेरी रात थी
अनायास ही मैं बेचैन हो रही
अजीबो- गरीब खयालों में डूबी हुई
हर दिवस में एक दिन होता,
एक शाम होती, हर रात के बाद
एक सुबह फिर से क़त्ले आम होती
ख्वाहिशों के किस्से अधूरे मेरे
क्या सोने से छँट जाएंगे अँधेरे
क्या वो सुबह आएगी
यही सोचते ,गहरी नींद सो गए
मंदिर की घंटियाँ
आरतियों की सुर लहरियाँ
पक्षियों की चहचहाहट
अस्ताचलगामी चन्द्रमा
क्षितिज पर छायी ये सूर्य की लालिमा
सब जैसे एक तारत्मय में जुड़े
एक से लयबद्ध में बंधे
स्वर सामंजस्यता, तालयुक्तता
सहभावना
तभी गूंज उठी शहनाई की सुर साधना
सवेरा भी अब लगे नवेली दुलहन जैसे
प्रकृति के संग मधुर सम्बन्ध हो जैसे इसके
ब्रह्म मुहूर्त की जागी हुई
चाय की चुस्कियां कब मैं लेने लगी
अनेकों अनुभूतियों संग
आनन्दमय हुई भोर मेरी
अब मन में जोश है उमंग है
फिर से खुद को जगाने को
मिला एक और नया दिन है.
@Ajha.24.06.16
Wednesday, 22 June 2016
"अनगढ़ माँ"
कुछ पल अभी गुजारे जो
माँ के साथ
पसरी उदासी घर में आज
बेटी हूँ मैं, भला कब तक
रहती वो मेरे पास
सोचा _क्यों ना बनवा लूँ
इक मूरत ,जो हरदम रहे मेरे साथ
जा पहुंची मूर्तिकार के पास
जो था कलाओं का पारखी
भावनाओं से भरी हुई
मूर्तियां थी खूब उसने तराशी
कलाओं में था उसके खूब निखार
अपनी कल्पनाओं का था वो अदाकार
कभी संग तराशता
कभी धातुओं को निखारता
मिटटी भी खूब उसने थी ढाली
मोम भी खूब पिघलाई और जमाई
चेहरे खूब थे उसने बनाये
किसी को सोलह श्रृंगार तो
किसी में वीर रस समाये
किसी में भर दिया डर और
किसी में मातम बर्बस कर दिया
कोई रास रचैया तो कोई बंसी बजैया
कोई अनारकली तो कोई सलीम
जो अक्स फिर मैंने माँ का दिखाया
मूर्ति गढ़वाने का फैसला सुनाया
नत मस्तक हो अक्स के आगे
बोला ये जांच है मेरे लिए
आज तक मैंने फ़साने उकेरे
ये तो हकीकत है , ना उतार पाऊंगा
इसे कला में अपने ढालने की
ना जुरर्त की है ना जुटा पाऊंगा
एक इस ख़ुशी के चेहरे
के भीतर हजारों गम को
कैसेछुपाऊंगा और
कैसे मैं दिखाऊंगा.
माँ के जज़्बात ही होते हैं
कुछ ऐसे
हाथ खड़े करने पड़ते हैं
सबको ही वैसे.
@Ajha.23.06.16
Tuesday, 21 June 2016
भस्म
भस्म रमा ये ललाट पर
ना ये कोई राख है
ना ये कोई ख़ाक है
खुद के गुरुर को जब
जला दिया
ना अब मजहब कोई इसका
शैख़ रचाये या बरहमन
इक संकल्प है खुद के भीतर
तपिश से इसकी ,खुद में
इक लौ प्रज्वलित हर पल
ना तबाह होगी जिंदगी
ना बर्बाद होगी जिंदगी
आबाद होंगे वो अरमान
जो शोले बन धधकते रहे
जो चिंगारी बन चटकते रहे
ना निकलेगी आह कभी
सधी रहेगी आग इसकी
ना पीछे मुड़ना है कभी
ना आगे झुकना है कभी
ना कोई मज़हब
ना कोई दीनो-ईमान ही चिंगारी
बन जलायेगी
ना तूफां बन डराएगी
बिजलियों की गर्जना में
शेर की दहाड़ हम सुनाएंगे
किया जो तिलक भस्म का
बाज़ी जीत कर ही आएँगे.
@Ajha.21.06.16
अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस
"अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस"
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आज 'अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस' देश और दुनिया को हम सबने मनाते देखा. कुछ लोग इस कार्यक्रम में योगदान दे, इसे सफल बनाये. शिरकत करने वाले तबकों पर अगर गौर करते तो मुस्कराहट ही दिखाई दे रही थी. सुबह जब मैं चाय की चुस्कियां ले बाहर का नज़ारा कर रही थी तो बड़ी तादाद में लोग वापिस घर की ओर जा रहे थे ,कितनीे आनन्दमई मुस्कान थी उनके चेहरों पर. ज़रा सोचिये गर्मियों की छुट्टी, बच्चे घर पर , फिर किसे सवेरे बिस्तर छोड़ने की इच्छा होती है. इतना ही नहीं, तभी सासु माँ को गाँव में हाल-चाल जानने के लिये फोन से बात करनी चाही तो उन्होंने यह कह कर बात नहीं की कि गाँव में योग शिविर लगा है और जाने में देर हो जायेगी, वह लौट कर फिर बात करेंगी. ज़रा सोचिये उन लोगों की मेहनत और सोच को जिनसे देश और दुनिया ब्रह्म मुहूर्त में जाग योग पर जा बैठा.
अब ज़रा देश के उस तबके की ओर भी एक नज़र हो जो अपने drawing room में बैठ मीडिया पर बैठे expert ,जिनमे ज्यादातर लोग छीटा-कशी के लिए ही बुलाये जाते हैं और media house का एक ही मक़सद अपने चैनेल की लोकप्रियता बढाना. देश के हित में कोई बात हो तो भी कोई फर्क नहीं बस सोच हमेशा नकारात्मक रखने में विशवास रखना.
सुबह से social media पर viral हुआ यह संवाद कि योग की लोकप्रियता का श्रेय इनके पुरातन रचयिता को ना जाकर कही रामदेव के खाते में ना चला जाय.कितनी तुच्छ मानसिकता का हम परिचय दे रहे हैं. एक भारतीय ,अपने पुरातन गौरवमयी इतिहास को विश्व पटल पर रख रहा है जिससे ना जाने कितने प्रवासी ' सर्व धर्म समभाव' की भावना से लाभान्वित हो रहे हैं, प्रवासी भारतीय अपनी संस्कृति पर गौरवान्वित हो रहे हैँ और एक हम
अपने ही देश में रहकर हर बातों का राजनीतिकरण करने से बाज़ नहीं आते. खासकर शिक्षित समाज भी जब दलगत राजनीति से प्रेरित हो अपनी बाते कहता है तो वह अत्यंत ही पीड़ादायक होती है. एक आदमी की सोच बस इतनी ही होती है_
"मज़हबी बहस मैंने कभी की ही नहीं
फ़ालतू अक्ल मुझ में थी ही नहीं"
----अकबर इलाहबादी
और यह भी कि_
"इश्क नाजुक मिज़ाज़ है बेहद
अक्ल का बोझ उठा नहीं सकता"
------अकबर इलाहबादी.
Sunday, 19 June 2016
पत्थर
पहाड़ी चट्टानों के बीच
था एक टीले पर मैं बैठा हुआ
खुद से बातें कर, आत्ममंथन
था मैं कर रहा
तभी टीले का एक कण टूट कर
हथेलियों में कहीं से आ गया,
फिर इशारों से ही हुई कुछ
बातें दो-चार
था वो भी कहने को कुछ, बेकरार
बोला _तेरी जज़्बातों का मारा
आज मैं पत्थर हो गया
तुम तो इंसान हो गए और,
मुझे पाषाण कर दिया
हूँ तो मैं भी इक जीवाश्म ही
पर मेहरबानियों पे तेरे चल रहा
तेरे प्रेम की इक जांच से
कभी कोयला तो कभी
हीरा मैं बन गया
सोने की सच्चाई पर भी
लगी इक आंच
ना जो हुआ तुझे विश्वास
तपा-तपा के मुझे, तूने
कुंदन बना दिया
वो पत्थर था बड़ा ही जज़्बाती
फिर से बोला, देखो वजन तुम्हारा
तो सहता हूँ और बन पहाड़ ,
आकाश से भी बातें करता हूँ
मजबूरी उसकी भी सुन लो
जब तारे बूढ़े हो जाते
आकाश उसे ना सह पाता
टूट मुझी में, वो भी फिर पहाड़
बन जाता
मेरे हौंसलों की हो तारीफ़
बन बलवान पत्थर से खुद को
पर्वत बना लिया
हमसफर हूँ तेरा
आन-बान और शान हूँ
मैं अडिग, अविचल ,निरंतर पर
तू यहाँ एक मेहमान है
अब मुझ से ही है सुननी
दुनिया को तेरी कहानी
अब तू सोच ,कैसे संजोयेगा मुझे
बना के बंजर चट्टान या
चूमेगा मेरी पेशानी.
Thursday, 9 June 2016
मौन
जीवन के इस बगिया में
चिंतन के देखो
कितने फूल खिले
कुछ श्वेत ,कुछ नीलाभ
कुछ रक्त वर्ण लिये.
नभ सी ऊँचाई
झील सी गहराई
शांत नदी सी रानाई (बहाव )
अंत: में लिये अनंत
ज्वार - भाटा का खेल
क्या इसको समझें _
दर्द या खुशी का मेल !
या खुद की दुविधा
या शांति की परिचायकता
या संघर्षों से डर गये
या तूफ़ानी वेगों से सहम गये
या के प्रेम की है वो स्थिति
जहाँ सारी अवस्थाएँ निशब्द
हो गईं
मन वैराग्य ले है झूमता
'मौन ' की अनेकों अवस्था
कितने रहस्य अपने अंत: में
है छुपा रखा
काश कि , कोरे काग़ज़ पर
लिख देती
शब्दों को ढाल बना
सब कुछ कह देती
वो सब बातें
पर यह सम्भव ना
हो सकता
जब जज्बातों के लिये
शब्द लघु लगने लगे
देखो ___ तभी
'मौन ' चित्त से बातें
करने लगे.@Ajha .10.06.16
Wednesday, 8 June 2016
प्रकृति संवर्धन
प्रकृति से है संस्कृति
संस्कृति से प्रकृति का गुणगान
पंच भूत से बनी प्रकृति
पंचभूत का है इंसान
प्रकृति प्रदत्त यह पर्यावरण
क्यों कर रहा इसका तू अपमान
भौतिकता की ये कैसी भाषा
अतिवादीे से हुई ये दुर्दशा
खुद को सम्भ्रांत बताने में
पर्यावरण से ये खिलवाड़ हो रहा
प्रौद्योगिकी के नाम पर
पर्यावरण दोहन से खुद को
माला -माल किया
सभ्यताओं के ढहने का
ना कभी कोई ख़याल किया
क्या होगा फ़िर आने वाली नस्लों
कब ये सोच -समझ तुझ मे आयेगी
दर्पण देखो ,अब तो सुधरो कुछ तो ,
नवनिर्माण की खातिर
आओ , एक बार फ़िर से
प्रकृति की ओर लौट चलो.
@Ajha.
Tuesday, 7 June 2016
वृध्द और वृद्धआश्रम
आज Vandana तुमने बहुत गम्भीर बात को कविता के माध्यम से उजागर किया.इसी पर मैं तुम्हारे timeline के माध्यम से एक सच्ची और मार्मिक किस्सा बताती हूँ.अंजना तब advertisement copy writing का job कर रही थी और इसी बाबत उसे Helpage lndia का कुछ काम मिला था.जिन व्यक्ति से उसका परिचय हुआ ,वो वहाँ के किसी बड़े पद पर आसीन थे और सेवा निवृत ज़िंदगी व्यतीत कर रहे थे.इनकी दोस्ती ऐसी हुई कि वो महानुभाव हमारे घर पधारे.उन्होने गुजारिश की कि जब भी आपको फुरसत हो तो हफ्ते या महीने में एक लम्हा इस संस्था में गुजारिये ताकि जो ये वृद्ध जन जो कि येकसानी ज़िंदगी व्यतीत करते हैं और अंत समय का इंतजार कर रहे हैं उनके चेहरे पर कुछ समय के लिये ही सही मुस्कान आ जाये.
बातो के दौरान अपने बारे में बताया वो और भी दर्दनाक था.बोल बैठे कि उनके बच्चे उच्च पदों पर आसीन हैं पर घर की स्थिति ऐसी है जिसमें हम दोनों रह नहीँ सकते.और हम दोनों अगर वृद्ध आश्रम में एक साथ रहेंगे तो इसका खर्चा बहुत बैठेगा जो मेरे पास नहीँ.काफी सोच -विचार के बाद जो हल निकला वो यह था की पत्नी तो स्त्री है वह कैसे भी रह लेगी ,घर के काम काज में हाथ बँटा देगी और आप चूँकि पुरुष तो हर तरह की व्यवस्था सोचनी होगी और इसलिये पत्नी बच्चों के साथ आप वृद्ध आश्रम चले गये. और अब या तो पत्नी या आप में से कोई आपस में साप्ताहिक मेल -जोल करने चले आते हैं.
हम तो बस निशब्द हैं तब भी और आज भी.
अब बात हाथ से गई फिसल
ये तो है हमारे कर्मों का फल
जब वृद्ध जनों को हमने छोड़ा
तो फ़िर क्यों हम ढूंढे जीने को कोना
बात पते की जबतक समझें -समझायेंगे
एक और पुश्त से हम फ़िर से बिछड़ जायेंगे .@Ajha.
Sunday, 5 June 2016
कहीँ पढ़ा था _
पानी ने भी क्या अजीब खेल रचाया है!!
............
जिसके खेत सूखे-सूखे से थे
"पानी" उसी की आखों में नज़र आया है.
'फ़िराक '
वो जैसे है ही नहीं इस अदा से सामने है
अगर कहूं कि वो मुझसे ख़फ़ा, ख़फ़ा भी नहीं
भला है कौन, बुरा है कौन, इस ज़माने में
बुरा, बुरा भी नहीं है, भला, भला भी नहीं
वो आंख कहती है ऐसे का क्या ठिकाना है
फ़िराक़ आदमी तो है भला, भला भी नहीं
Friday, 3 June 2016
मासूमियत
तस्वीर में मुस्कुराते ये बच्चे
सौ टका शुद्ध खरा सोना हो जैसे
ख्वाहिशों का इन्हें पता नहीँ
तकदीर से जुड़ी कुछ ये जानते नहीँ
इक ज़रा मुस्कुराकर बाहें जो फैला दी हमने
एक साथ कई सितारे जगमगा गये हों जैसे
खिलौने खेलने की उम्र में
खिलौने बेचते ये बच्चे
माँ की विवशताओं मे पले ये बच्चे
एक और बच्चे को गोद में लिये बच्चे
अक्षर का ज्ञान हो ना बेशक इन्हें
अखबार और विदेशी किताबों को
बेचते ये बच्चे
काश कि इन मुस्कुराते बच्चों पर
इतना तो करम हो जाता
कुछ को पढ़ा देते
कुछ को खिला देते
किस्से कहानियों से चंदा मामा से मिला देते
कई ख्वाबों को आकार मिल जाता
हमें भी अपना खुदा मिल जाता
बुतख़ाने ,मस्जिद तो शायद दूर भी
हों
चलो इन्हीं बच्चों में अपने अपनी
मुस्कुराहट ढूँढ लायें
अपने खुदा से मिल आयें.
@Ajha.04:06:16
@manjula verma thakur ,your photo and photography _ excellent.
Thursday, 2 June 2016
तुम्हारे लिये "मैं "
रिश्ते में जो इक नजाकत है
कबूल है मुझको
टूटने के डर से सम्भालती रहूँ
मैं वो तो नहीँ
कर लिया जो एक बार
इंतखाब तुझे ,(चुन लिया )
है बहुत भरोसा खुद पर मुझे
इरादों की भी हूँ बहुत पक्की
तूफां भी हिला नहीं
सकता मुझे
पर्वत की तरह कठोर हूँ
पानी की तरह निर्मल
मन मेरा
बातों से जो घबरा जाऊँ ,
ये नहीँ है मेरी फितरत
ये अब तू सोच
क्या करना है तुझे
खुद के लिये है जीना
या दुनिया को है सोचना
प्यार जो तुमने किया मुझसे
वो तेरी सोच का है हिस्सा
कभी मेरी नज़र का प्यार
भी तो तुझेसमझना
तुमने प्यार को
बंधन में ढाल दिया
और बारहा इसके टूटने
का डर है तुम्हे सता रहा
मेरे प्यार की नहीँ है
कोई भी सीमा
फ़िर टूटने का
डर हो भी मुझे कैसा
जब दिल से खुदा
तुझे मान लिया ,
तो बस अब है
सजदा ही सजदा
फ़िर फिकर मुझे काहे की
कि तू मेरा है या
किसी और का.
@Ajha.06.06.16