वो जैसे है ही नहीं इस अदा से सामने है अगर कहूं कि वो मुझसे ख़फ़ा, ख़फ़ा भी नहीं
भला है कौन, बुरा है कौन, इस ज़माने में बुरा, बुरा भी नहीं है, भला, भला भी नहीं
वो आंख कहती है ऐसे का क्या ठिकाना है फ़िराक़ आदमी तो है भला, भला भी नहीं
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