प्रकृति से है संस्कृति
संस्कृति से प्रकृति का गुणगान
पंच भूत से बनी प्रकृति
पंचभूत का है इंसान
प्रकृति प्रदत्त यह पर्यावरण
क्यों कर रहा इसका तू अपमान
भौतिकता की ये कैसी भाषा
अतिवादीे से हुई ये दुर्दशा
खुद को सम्भ्रांत बताने में
पर्यावरण से ये खिलवाड़ हो रहा
प्रौद्योगिकी के नाम पर
पर्यावरण दोहन से खुद को
माला -माल किया
सभ्यताओं के ढहने का
ना कभी कोई ख़याल किया
क्या होगा फ़िर आने वाली नस्लों
कब ये सोच -समझ तुझ मे आयेगी
दर्पण देखो ,अब तो सुधरो कुछ तो ,
नवनिर्माण की खातिर
आओ , एक बार फ़िर से
प्रकृति की ओर लौट चलो.
@Ajha.
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