आज Vandana तुमने बहुत गम्भीर बात को कविता के माध्यम से उजागर किया.इसी पर मैं तुम्हारे timeline के माध्यम से एक सच्ची और मार्मिक किस्सा बताती हूँ.अंजना तब advertisement copy writing का job कर रही थी और इसी बाबत उसे Helpage lndia का कुछ काम मिला था.जिन व्यक्ति से उसका परिचय हुआ ,वो वहाँ के किसी बड़े पद पर आसीन थे और सेवा निवृत ज़िंदगी व्यतीत कर रहे थे.इनकी दोस्ती ऐसी हुई कि वो महानुभाव हमारे घर पधारे.उन्होने गुजारिश की कि जब भी आपको फुरसत हो तो हफ्ते या महीने में एक लम्हा इस संस्था में गुजारिये ताकि जो ये वृद्ध जन जो कि येकसानी ज़िंदगी व्यतीत करते हैं और अंत समय का इंतजार कर रहे हैं उनके चेहरे पर कुछ समय के लिये ही सही मुस्कान आ जाये.
बातो के दौरान अपने बारे में बताया वो और भी दर्दनाक था.बोल बैठे कि उनके बच्चे उच्च पदों पर आसीन हैं पर घर की स्थिति ऐसी है जिसमें हम दोनों रह नहीँ सकते.और हम दोनों अगर वृद्ध आश्रम में एक साथ रहेंगे तो इसका खर्चा बहुत बैठेगा जो मेरे पास नहीँ.काफी सोच -विचार के बाद जो हल निकला वो यह था की पत्नी तो स्त्री है वह कैसे भी रह लेगी ,घर के काम काज में हाथ बँटा देगी और आप चूँकि पुरुष तो हर तरह की व्यवस्था सोचनी होगी और इसलिये पत्नी बच्चों के साथ आप वृद्ध आश्रम चले गये. और अब या तो पत्नी या आप में से कोई आपस में साप्ताहिक मेल -जोल करने चले आते हैं.
हम तो बस निशब्द हैं तब भी और आज भी.
अब बात हाथ से गई फिसल
ये तो है हमारे कर्मों का फल
जब वृद्ध जनों को हमने छोड़ा
तो फ़िर क्यों हम ढूंढे जीने को कोना
बात पते की जबतक समझें -समझायेंगे
एक और पुश्त से हम फ़िर से बिछड़ जायेंगे .@Ajha.
No comments:
Post a Comment