रिश्ते में जो इक नजाकत है
कबूल है मुझको
टूटने के डर से सम्भालती रहूँ
मैं वो तो नहीँ
कर लिया जो एक बार
इंतखाब तुझे ,(चुन लिया )
है बहुत भरोसा खुद पर मुझे
इरादों की भी हूँ बहुत पक्की
तूफां भी हिला नहीं
सकता मुझे
पर्वत की तरह कठोर हूँ
पानी की तरह निर्मल
मन मेरा
बातों से जो घबरा जाऊँ ,
ये नहीँ है मेरी फितरत
ये अब तू सोच
क्या करना है तुझे
खुद के लिये है जीना
या दुनिया को है सोचना
प्यार जो तुमने किया मुझसे
वो तेरी सोच का है हिस्सा
कभी मेरी नज़र का प्यार
भी तो तुझेसमझना
तुमने प्यार को
बंधन में ढाल दिया
और बारहा इसके टूटने
का डर है तुम्हे सता रहा
मेरे प्यार की नहीँ है
कोई भी सीमा
फ़िर टूटने का
डर हो भी मुझे कैसा
जब दिल से खुदा
तुझे मान लिया ,
तो बस अब है
सजदा ही सजदा
फ़िर फिकर मुझे काहे की
कि तू मेरा है या
किसी और का.
@Ajha.06.06.16
Thursday, 2 June 2016
तुम्हारे लिये "मैं "
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment