Tuesday, 21 June 2016

अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस

"अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस"
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              आज 'अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस' देश और दुनिया को हम सबने मनाते देखा. कुछ लोग इस कार्यक्रम में योगदान दे, इसे सफल बनाये. शिरकत करने वाले तबकों पर अगर गौर करते तो मुस्कराहट ही दिखाई दे  रही थी. सुबह जब मैं चाय की चुस्कियां ले बाहर का नज़ारा कर रही थी तो  बड़ी तादाद में लोग वापिस घर की ओर जा रहे थे ,कितनीे आनन्दमई मुस्कान थी उनके चेहरों पर. ज़रा सोचिये गर्मियों की छुट्टी, बच्चे घर पर , फिर किसे सवेरे बिस्तर छोड़ने की इच्छा होती है. इतना ही नहीं, तभी सासु माँ को गाँव में हाल-चाल जानने के लिये फोन से बात करनी चाही तो उन्होंने यह कह कर बात नहीं की कि गाँव में योग शिविर लगा है और जाने में देर हो जायेगी, वह लौट कर फिर बात करेंगी. ज़रा सोचिये उन लोगों की मेहनत और सोच को जिनसे देश और दुनिया ब्रह्म मुहूर्त में जाग योग पर जा बैठा.
             अब ज़रा देश के उस तबके की ओर भी एक नज़र हो जो अपने drawing room में बैठ मीडिया पर बैठे expert ,जिनमे ज्यादातर लोग छीटा-कशी के लिए ही बुलाये जाते हैं और media house का एक ही मक़सद अपने चैनेल की लोकप्रियता बढाना. देश के हित में कोई बात हो तो भी कोई फर्क नहीं बस सोच  हमेशा नकारात्मक रखने में विशवास रखना.
                सुबह से social media पर viral हुआ यह संवाद कि योग की लोकप्रियता का श्रेय इनके पुरातन रचयिता को ना जाकर कही रामदेव के खाते में ना चला जाय.कितनी तुच्छ मानसिकता का हम परिचय दे रहे हैं. एक भारतीय ,अपने पुरातन गौरवमयी इतिहास को विश्व पटल पर रख रहा है जिससे ना जाने कितने प्रवासी ' सर्व धर्म समभाव' की भावना से लाभान्वित हो रहे हैं, प्रवासी भारतीय अपनी संस्कृति पर गौरवान्वित हो रहे हैँ और एक हम
अपने ही देश में रहकर हर बातों का राजनीतिकरण करने से बाज़ नहीं आते. खासकर शिक्षित समाज भी जब दलगत राजनीति से प्रेरित हो अपनी बाते कहता है तो वह अत्यंत ही पीड़ादायक होती है. एक आदमी की सोच बस इतनी ही होती है_

"मज़हबी बहस मैंने कभी की ही नहीं
फ़ालतू अक्ल मुझ में थी ही नहीं"
                        ----अकबर इलाहबादी

और यह भी कि_

"इश्क नाजुक मिज़ाज़ है बेहद
  अक्ल का बोझ उठा नहीं सकता"
                    ------अकबर इलाहबादी.

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