प्रकृति ने ये कैसा
रास रचाया .
बादलों को भी दे दी
रूप और भाषा .
संकेतों से ये बता रहा ,
कब गरजेगा,
कब बरसेगा ,
कब नाच उठेगा मन .
सूखे ने तो किसानों को
है रुलाया,
बादलों ने गरज- बरस कर
शुभ संदेश बताया .
प्रेमियों के प्रेम का
संकेत है बादल ,
कवियों के कल्पना की
उड़ान है बादल .
अतिवृष्टि और अनावृष्टि
रूप हैं बरसाती दिनों के ,
अनावृष्टि जीवन को सूखती है ,
अतिवृष्टि जीवन को बहाती है ,
हमारे किये का ही तो
ये दोनो अभिशाप हैं .
उठो , जागो , देखो
बारिश आयी है ,
क्या बात है , क्या बात है .
प्रकृति का ही तो रचा
ये रास है , ये रास है .
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