Thursday, 13 August 2015

गाँव तो मेरा बेगाना हुआ

गाँव तो मेरा बेगाना हुआ ,
गाँव तो मेरा बेगाना हुआ .
परदेश में बैठे वो यादें ताज़ी करना ,
वो अमराई , वो खेतों की लहलहाई ,
सब वीराना हुआ ,
गाँव तो मेरा बेगाना हुआ .
वो यादों में बसा कागज़ की कश्ती ,
वो बारिश का पानी ,
बस गुज़रा ज़माना हुआ ,
गाँव तो मेरा बेगाना हुआ .
वो बडो के बैठकों का दौर ,
वो बच्चों के खेलने का शोर ,
सब फ़साना हुआ ,
गाँव तो मेरा बेगाना हुआ .
ना था किस्मत को मंजूर ,
अपने लोगों में झूमें, मिट्टी को चूमें,
बस यही अफ़साना हुआ ,
गाँव तो मेरा बेगाना हुआ .

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