Thursday, 13 August 2015

मिस्साइल और टीपू सुल्तान

            आप भी चौंक गये होंगे कि ये कैसा विषय है ? दोनो की परस्परता कैसे ? आज देश जब अपनी स्वतंत्रता दिवस की सालगिरह मनाने की तैयारी में जुटा है तो मानो सम्पूर्ण वातावरण देशभक्तिमय हो चला है . ऐसे में अपने गौरवपूर्ण इतिहास के पन्ने पलटने का मजा ही कुछ और  है . आज हमारा देश प्रक्षेपास्त्र की दुनिया में आगे बढ़ चला है . इसकी बुनियाद मैसूर के राजा हैदर अली और टीपू सुल्तान के राज में पर चुकी थी . उस ज़माने में ब्रिटिश शासको को रॉकेट के बारे में कोई जानकारी नहीं थी . हैदर अली के समय में इसका उपयोग बतौर सिग्नल होता था . बाद में टीपू सुल्तान , जो की तक्नीक के मामले में गहरी पैठ रखते थे , इसमें कुछ बदलाव कर अस्त्र के रूप में प्रयोग करने लगे. शुरू में तो ये बिल्कुल दीवाली के पटाखे की तरह जान पड़ती थी . पर बाद में टीपू ने इसमें एक तलवार को जोड़ा और  बारूद की कवरिंग को स्टील का बनवाया. इस कारण बारूद को जलाने पर उल्टी दिशा में जोर का दबाव पड़ता था जिससे इसके ध्वनि के मुकाबिले बारूद और तलवार के गति और तीव्रता दो- तीन गुना बढ़ गयी . अब दुश्मनों का बेतहाशा जानो-माल का नुकसान होने लगा और यही टीपू सुल्तान के जंग जीतने की मुख्य वजह बनी .बाद में फ्रांसीसियो को टीपू से मित्रता के कारण यह तकनीक सीखने को मिला परन्तु अंग्रेजों को अपने जंग की कामयाबी के लिये इस तकनीक को सीखना पड़ा . समय और मांग के अनुरूप इसकी विशालता बढायी गयी .
            आज ये rocket , प्रक्षेपास्त्र (missile) के रूप में जाना जाता है . अब इसे सिर्फ़ युध्द में ही नहीं बल्कि इसकी उपयोगिता navigation telecommunication एवम weather forcasting के लिये किया जाता है . आज हमारे पास खुद की बनायी प्रक्षेपास्त्र  " पॄथ्वी , अग्नि और ब्रह्मो " हैं जो दुनिया के समक्ष आत्मनिर्भर होने की निशानदेही है.
 

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