फ़िर बचपन एक बार
लौट के आया था , जब
मैने बच्चों की खातिर ,
नाव बनाया था .
तब भी नदी का किनारा था ,
दिल एक बार फ़िर से आवारा था .
सच में कहाँ आ गये हम ,
समझदारी के दल- दल में.
मस्ती भी है , आवारगी भी पर ,
बस अब ना वो नजारा है .
_ _ _ _ _ Aparna jha .
ये फोटो संध्या सिंह के timeline के सौजन्य से .
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