क्या हुआ जो
जिंदगी से चले गये .
क्या सोचा _
जी नहीँ पाऊँगा ?
और
दिल का क्या होगा ?
हाँ ,
ज़िंदगी जी मैंने ,
तेरी आसक्ति से दूर ,
मैं नास्तिक हो गया .
अब मैं जीता हूँ ,
खुद की सुनता हूँ ,
अब मैं हूँ ,
मेरा विश्वास है ,
मेरी सोच है ,
एक मार्ग है ,
एक समाज है .
एक आदर्श है ,
लोगों की मदद के लिये
जज्बात हैं .
अब हाथ मेरे दयनीयता
के लिये नहीँ ,
दुवाओं के लिये उठते हैं .
अब मैं आज़ाद हूँ ,
आबाद हूँ ,
खुदा से इंसा बन गया हूँ .
सहारे की मुझे ज़रूरत नहीँ ,
तूफां का डर नहीँ ,
समाजों का डर नहीँ ,
रवायतों का डर नहीँ .
खुदा का डर नहीँ .
मेरा विश्वास मेरे साथ है .
कहते हैं कि
इंसान कभी नास्तिक पैदा नहीँ होता ,
ये तो हालात है जो
नास्तिक बनाती है .
नास्तिकता बुरी तो नहीँ .
खुद को जगाने की ,
खड़ा रखने का विश्वास है .
और
जो जग गया ,
उसे कैसा डर _
इंसान का , भगवान का ?
क्यों कि मौत तो शरीरों की होती है .
आत्मा को क्या कोई मार सका .
Monday, 3 August 2015
नास्तिक
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