छोटी- छोटी बच्ची ,
उम्र की है कच्ची ,
मन से है सच्ची ,
पापा की दुलारी ,
माँ की है प्यारी .
खुशी की है पोटली .
आफिस जाने को
पापा का रस्ता है रोकती .
पापा फ़िर है मनाते .
जान- बुझ कर बच्चों से
तब हैं रूठ जाते .
बच्चे तब हैं उन्हें गले लगाते ,
प्यार से फ़िर खूब मनाते .
बिटिया तो है परी और मुनिया ,
हँसती रहे , खिलखिलाती रहे
यही है प्यार की दुनियाँ .
Sunday, 13 September 2015
बिटिया रानी
माँ
ये जो सहारा है ,
कर रहा तुम्हें
कुछ इशारा है .
ये कह रही _
मुझे तेरी जरूरत है ,
अबतक है मैंने तुम्हें थाम्हा ,
अब तू मुझे थाम ले ,
सुरक्षित मैं रहूँ ,
हँसती मैं रहूँ ,
तेरी दीदार में ही सबब -ए - शाद हो ,
तू मान ले ,
तू जान ले .
इक पल ना होना तू जुदा
आती रहे तेरी ही सदा ,
तू खुशबाश हो , शादाब हो , आबाद हो ,
बस माँ की है यही दुआ .
- - - - - - Aparna jha .
लकीर मेरे नाम की
कैसी ये लापरवाही ,
कैसी ये नादानी ,
मेरे नाम की लकीरों को
खिलौना समझा .
टूटने दिया , बिखरने दिया ,
डूबने दिया .
अब कैसे फ़िर से उसे नज़्म बनाओगे ,
गौशा- ए - दिल में कैसे उसे फ़िर बिठाओगे .
Monday, 7 September 2015
रिश्ते
अजब ये संसार है ,
एक ही रिश्ते में
अनेकों रिश्तों का सार है ,
ये संसार है .
क्या कहें इसे _
पति - पत्नी का रिश्ता ,
साथी का , सहचरी का ,
सहवासी , सहगामी का ,
अर्धनारिश्वर का ,
जहाँ प्यार है , तकरार है
शिकवे हैं , शिकायत है
थर्राहट है , बौखलाहट है ,
कभी अविश्वास है ,
फ़िर भी पूरा- पूरा विश्वास है .
बेफिक्री है ,
फ़िर भी फिक्र है .
इसमें माँ- बाप का रूप है .
आशाएं हैं , तमन्नाएँ हैं .
उम्मीदें हैं , विश्वास है
साथ चलने की आस है .
कभी आशाएं हिल जातीं हैं ,
तमन्नाएँ मिट जातीं हैं ,
पर ये वो बुनियाद हैं जो ,
विश्वास दिलाती हैं _
नींव कभी ना हिला है कभी
ना हिलेगा कभी .
मकान ना कभी ढला है ना धलेगा कभी
कैसा तूने संसार है रचाया _
अजब तेरी माया ,
गज़ब तेरी काया .
_ _ _ Aparna jha
Sunday, 6 September 2015
कम्पन (सम्वेदना )
ये कैसी , ये कैसी
हुई कम्पन मेरे तन में ,
और मन में _ कि
कभी सोचा ना था ,
कभी परखा ना था ,
ना कभी इस क़दर नज़र ही गयी .
खुद कि खुशियाँ ही देखी ,
खुद के ग़म पे रोये - रुलाये ,
शिकायतें हजारों रहीं पर ,
आँखें खुली जो देखा _
मजबूर आँखें , वो बीमार तन
वो परेशानियों की हालत ,
फ़िर भी अपनों को
आशीष देने की चाहत _
भगवान , क्या सोचा तूने
माँ - बाप बना कर .
_ _ _ _ _ Aparna jha
रक्षा बन्धन के बहाने (डोर )
डोर को देखा ,
बहुत कमज़ोर है ,
बेजुबान है , बेचारी है ,
ज़िंदगी कहते हैं जिसको
एक डोर से बँधी है ,
क्यों ऐसा लगा _
बेचारी है , लाचार है ,
मूक है , मजबूर है .
रिश्तों से बँधी है .
फरेब है , फ़साना है ,
दाग है , गाँठ है .
फ़िर भी ऐसा क्यों लगा _
ये जो गाँठ है ,
यही हमारा सम्मन है ,
हमारी ताक़त है ,
इसमें रहने की हमें आदत है .
यही सपना है ,
यही अपना है ,
बस सोच में घुन लग गया था ,
अहंकार में मन रम गया था ,
सब कुछ धूमिल हो गया था .
आँखें खुली _
ऐसी अनुभूति हुई कि ,
देर अब भी नहीँ कुछ हुई .
_ _ _ _ Aparna jha
बाबा - पोता
बाबा- पोते का देखा प्यार ,
पोता बोले चलो दिखाता हूँ संसार .
बाबा तुमने प्यार दिया ,
संस्कार दिया , सुखी रहूँ
आशीर्वाद दिया .
बाबा अब ये बारी मेरी है ,
नवजीवन में संग ले चलने की तैयारी है .
किस्से तुमने बहुत सुनाये,
गीत बहुत है तुमने गाये ,
बाबा अब ये बारी मेरी है ,
स्वछंदता से , उन्मुक्तता से
जीने की तैयारी है .
आओ ये मोबाइल उठाओ ,
दिल का अपने हाल उन्हें बताओ .
आओ सेल्फि और चित्रण कि विधि बताऊँ
फ़िर अपनी तुम सोच दिखाओ .
इंटेरनेट के पास तो आओ ,
सारी दुनिया को तुम दोस्त बनाओ .
किसने कहा _
बुढ़ापा एक बीमारी है ,
ये तो दुनिया जीतने की तैयारी है .
आओ हम - तुम साथ चले
दुनिया को एक . सीख मिले .
__ _ _ _ _ _ _ Aparna jha .
पंछी और कली
नज़ाक़त ,
नफासत ,
उम्मीदें ,
ख्वाहिशें ,
सुनापन ,
कुआँरापन ,
बांकपन,
सहमापन ,
इकरार,
इनकार ,
हिमाकत ,
हिफाज़त ,
सलाहियत ,
कमालियत ,
वाकीफियत ,
सुकुनियत ,
गहराई ,
वो अन्दाजे - आशनाई ,
बेaस्बाब ,
अजीब हालात ,
अटल विश्वास ,
रिहाई ,
इन्तहाई ,
सामन्जस्यता और
परस्परता ,
एक कली और पंछी का ,
यही है ज़िंदगी ,
इसी से बनती है कविता .
अक्स
जो गुज़र गई
सो गुज़र गई .
जो गुज़र रही है , गुज़र रही .
कभी इस तरह ना थे
हम - तुम आशना
मेरे हम नशीं , मेरे हमनवा
ये तुझे क्या हो गया _
कभी ख्वाब में भी ना सोचते
कि हम- तुम हो जायेंगे जुदा .
कभी जो कोई पत्ता हिले
या कि फ़िर हवा चले ,
तुम्हें ऐसा ही लगे
मैं तेरे पास हूँ , तेरे पास हूँ .
नींद में भी जब रहे ,
एक ज़रा क्या आवाज़ आई ,
घबराये सोच के तुम तन्हाई .
अपने सांसों में तुमने मुझे है समाया ,
अपनी धड़कनों में है बसाया ,
खुशनसीबी है मेरी
जिसे तुम मिले , मिल गयी
उम्र भर का सरमाया .
हमारी दास्तां
मेरे हमसफ़र , मेरे हमसफ़र
मुझे आ रही है तुझ से सदा ,
आ ज़रा मेरे पास आ , मेरे पास आ .
मुझे सुननी है तुझसे
हमारे प्यार की दास्तां .
ये ना था कोई इत्तफाक ,
ना थी कोई इश्क की इब्तदा ,
ना इशारों की कोई बात थी,
जहाँ हम से थे तुम मिले ,
वो शादी की रात थी .
शहनाई की गूँज ने दी थी ये इत्तला ,
आज तुझे भी मिल गया
तेरा हमनशीं , तेरा हमनवा .
ज़िंदगी के रास्ते कुछ अजीब हैं ,
चलना तो था हमें साथ - साथ ,
पर बैठे थे जुदा- जुदा हम उस रात .
हमें तो ना था पता ,
ज़िंदगी ने किया है क्या फैसला .
हम चलते गये ,
रास्ते मिलते गये .
पर मुझे ये क्या हुआ ,
क्यों काँप उठी मेरी वफा,
पर तभी तूने थाम लिया ,
इश्क ने और नया एक रूप लिया
जहाँ सिर्फ़ हम थे और हमारी वफा.
ये तो है हमारे इश्क की दास्तां _
आगाज का तो है पता,
आगे- आगे देखिये होता है क्या .
- - - - - - - - - - - - Aparna jha .