मेरे हमसफ़र , मेरे हमसफ़र
मुझे आ रही है तुझ से सदा ,
आ ज़रा मेरे पास आ , मेरे पास आ .
मुझे सुननी है तुझसे
हमारे प्यार की दास्तां .
ये ना था कोई इत्तफाक ,
ना थी कोई इश्क की इब्तदा ,
ना इशारों की कोई बात थी,
जहाँ हम से थे तुम मिले ,
वो शादी की रात थी .
शहनाई की गूँज ने दी थी ये इत्तला ,
आज तुझे भी मिल गया
तेरा हमनशीं , तेरा हमनवा .
ज़िंदगी के रास्ते कुछ अजीब हैं ,
चलना तो था हमें साथ - साथ ,
पर बैठे थे जुदा- जुदा हम उस रात .
हमें तो ना था पता ,
ज़िंदगी ने किया है क्या फैसला .
हम चलते गये ,
रास्ते मिलते गये .
पर मुझे ये क्या हुआ ,
क्यों काँप उठी मेरी वफा,
पर तभी तूने थाम लिया ,
इश्क ने और नया एक रूप लिया
जहाँ सिर्फ़ हम थे और हमारी वफा.
ये तो है हमारे इश्क की दास्तां _
आगाज का तो है पता,
आगे- आगे देखिये होता है क्या .
- - - - - - - - - - - - Aparna jha .
Sunday, 6 September 2015
हमारी दास्तां
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