ये कैसी , ये कैसी
हुई कम्पन मेरे तन में ,
और मन में _ कि
कभी सोचा ना था ,
कभी परखा ना था ,
ना कभी इस क़दर नज़र ही गयी .
खुद कि खुशियाँ ही देखी ,
खुद के ग़म पे रोये - रुलाये ,
शिकायतें हजारों रहीं पर ,
आँखें खुली जो देखा _
मजबूर आँखें , वो बीमार तन
वो परेशानियों की हालत ,
फ़िर भी अपनों को
आशीष देने की चाहत _
भगवान , क्या सोचा तूने
माँ - बाप बना कर .
_ _ _ _ _ Aparna jha
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