Sunday, 13 September 2015

लकीर मेरे नाम की

कैसी ये लापरवाही ,
कैसी ये नादानी ,
मेरे नाम की लकीरों को
खिलौना समझा .
टूटने दिया , बिखरने दिया ,
डूबने दिया .
अब कैसे फ़िर से उसे नज़्म बनाओगे ,
गौशा- ए - दिल में कैसे उसे फ़िर बिठाओगे .

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