Sunday, 6 September 2015

अक्स

जो गुज़र  गई
सो गुज़र गई .
जो गुज़र रही है , गुज़र रही .
कभी इस तरह ना थे
हम - तुम आशना
मेरे हम नशीं , मेरे हमनवा 

 ये तुझे क्या हो गया  _               

कभी ख्वाब में भी ना सोचते 

कि हम- तुम हो जायेंगे जुदा .
कभी जो कोई पत्ता हिले
या कि फ़िर हवा चले ,
तुम्हें ऐसा ही लगे
मैं तेरे पास हूँ , तेरे पास हूँ .
नींद में भी जब रहे , 
एक ज़रा क्या आवाज़ आई ,
घबराये सोच के तुम तन्हाई .
अपने सांसों में तुमने मुझे है समाया ,
अपनी धड़कनों में है बसाया ,
खुशनसीबी है मेरी 
जिसे तुम मिले , मिल गयी
उम्र भर का सरमाया . 

No comments:

Post a Comment