Monday, 2 January 2017

ससुराल गेंदा फूल

"अरे घूँघट क्यों कर रही हो हमसे. ये हमारा सौभाग्य कि तुम यहां आईं. एक बात और , यदि तुम घुघट में ही बैठोगी तो हमें पहचानोगी कैसे?" पतिदेव की नानी कीे कही ये सारी बातें श्यामली के कानों में आज भी गूंज रहे थे. आज विवाह के इतने साल होने को आये मगर हर वो बातें उसे याद थीं जिसने उसके जीवन में मधु रस घोलने का काम किया था. श्यामली शहर में पली बहुत ही सिमित माहौल में पली बढ़ी थी. ग्रामीण परिवेश में विवाह होने से थोड़ा सहम सी गई थी.ऐसा नहीं कि वह परिवार बनाना नहीं जानती थी, परंतु एक समय में इतने बंधू बांधवों की कसौटी पर खड़ा उतरना ...
    विवाह के कुछ ही दिन तो हुए थे कि मामी सास श्यामली के लिए देवी रूपा हो आईं थीं ,समय-समय पर अपने  सकारात्मक अनुभवों से एक कदम और आगे बढ़ने की उसे प्रेरणा दे जातीं.जिस ससुराल में आधे मीटर का घूँघट और बहू की आवाज दूसरों के कानों तक ना पहुंचे उसे के अच्छे संस्कारों में गिना जाय, वहां भला श्यामली कैसे रच-बस पाती.यही सोच के दिन काटे जा रहे थे और एक दिन ऐसा भी आया कि श्यामली ने खुद को लंबे से घूंघट में ससुराल में पाया.तभी अनेकों विधि-विधान और परिवार ,सगे-संबंधियों के बीच स्यामली के सास-ससुर ने ऐलान किया था _ "आज से श्यामली मेरी बहू नहीं बेटी है, इस घर में कोई पर्दा प्रथा नहीं चलेगा .भगवान् ने बेटी नहीं दी परन्तु बहु के रूप में मुझे जो बेटी मिली वह मैं घुघट के कारण कदापि खोना नहीं चाहता."
  @Ajha.03.01.16

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