"बुद्धम शरणम गच्छामि"
अजब था वो माहौल बड़ा
समाज कोलाहलों के बीच पड़ा
तब राजतंत्र की बातें थीं
निरंकुशता की सौगातें थीं
अतिवादी का वो दौर बड़ा
दकियानूसी से भरा पड़ा
छोड़ राज -पाट और मोह को
वो 'राजकुमार' धर्म की राह चला
दिव्य ज्ञान जो उसने पाया
'गौतम बुद्ध ' वो कहलाया
'मध्यम मार्ग ' का लोगों को
जो सूत्र उसने बतलाया
कत्लो-गारत करने को'अँगुलिमाल'
भी बौध्द भिक्षु बन बैठा कह कर
"बुध्धम् शरणम् गच्छामि "
सांसारिक सुखों से भरा पड़ा
सम्राट 'अशोक' था नाम जिनका
ना रास आई जीवन की नीरसता
लेकर संग अपने वो काफिला
धर्म की राह पर चल निकला
"बुध्धम् शरणम् गच्छामि "
हे बुध्द ! आज फ़िर देश
तुझे है बुला रहा
भौतिकता की अतिवादी में
असहिष्णुता की राह
पर है देश है चल पड़ा
सूत्र भी तेरे अब कमज़ोर पड़े
आ फ़िर से एक बार आ
लोगों को फ़िर से
अपना वो सूत्र बता
देश तरक्की पर चल जाये
लोग खुशियों में रम जायें
मध्यम मार्ग का बस यही
एक सूत्र रहे _
"बुद्धम् शरणम् गच्छामि "
@Ajha.31.01.16
स्वरचित,मौलिक रचना
©अपर्णा झा.
No comments:
Post a Comment