Monday, 23 January 2017

झुक गया आसमान

-अरे ललित तुम यहाँ !
-कब आये लंदन से ?
-बस एयरपोर्ट के रास्ते सीधे तुम्हारे स्कूल ही आ   रहा हूँ.
-ऐसी भी क्या जल्दी थी ?घर जाकर थोड़ा आराम कर लेते ,तब तक मैं भी स्कूल से वापिस लौट आई रहती. इतना लंबा सफर.... थक तो गए ही होगे.
- नहीं थका हूँ ,मैं जिस कारण से यहां आया हूँ , तुमसे मिलना मेरे लिए बेहद जरुरी था. बस अब तुम आज की छुट्टी ले मेरे साथ रहो. मुझे तुम से कुछ जरुरी बातें करनी है.
-और  ये ! ये तुमने अपनी हालत क्या बना रखी है?
श्वेत साड़ी, मोटे फ्रेम का चश्मा ,क्या हो गया है तुम्हे?
-अच्छा छोड़ो ये सब. तुम्हार यहां आने का प्रयोजन तो बताओ?
-हाँ रंजना, तुम से विदा ले जब मैं उच्च शिक्षा के लिए लंदन गया ,इस वादे के संग कि व्यवस्थित होते ही तुम्हें अपने साथ विवाह कर ले जाऊंगा.
पर वहां,  तुम्हारे अधूरेपन ने मुझे जेस्सी से मिला दिया.
- जेस्सी से विवाह कर ,माँ से आशीर्वाद लेने जब यहां आया था, तुम्हें मिलाया भी तो था उससे....
-बिलकुल स्वभाव में तुम्हारी ही तरह .....
- हाँ ललित, बड़ी प्यारी सी परी है वो. कैसी है वो अब!!!
- रंजना कुछ भी ठीक नहीं. जेस्सी का तुमसे  मिलना ,प्रभावित होना और मेरी हालत कुछ भी तो उससे छिपी नहीं है. बहुत जिद्दी स्वाभाव की है जेस्सी.जिस बात का जिद्द लगा बैठती है उसे पूरा करके ही छोड़ती है. और अब वह जिद्द लगा बैठी है कि मैं तुम्हें ब्याह कर अपने पास ले आऊँ.
-रंजना क्या तुम जेस्सी के इस जिद्द को पूरा करोगी.मेरी खातिर ना सही जेस्सी के लिये तो मान जाओ.
-ललित,  बचपन से ही मैं तुम्हारे साथ पली बढ़ी,पर तुम्हारे साथ का अहसास दसवीं कक्षा में ही हुआ था.तबसे सर्वस्व मैंने तुम्ही को माना. तुम लन्दन गए,उन्ही दिनों इतिहास में मैंने अपनी पीएचडी कर डाली.मुझे प्रोफ़ेसर की नौकरी भी मिल गई थी.
-जानते हो , जब तुमने अपनी और जेस्सी की बात बताई, धक्का तो मुझे बहुत जोरों का लगा था. सर्वस्व त्याग चुकी थी मैं ,परन्तु मेरे अंदर का आत्मबल मुझे टूटने से बचा लिया.तभी मैंने प्रण ले लिया था कि स्कूल के 10वीं कक्षा की बच्चियों को ही इतिहास पढ़ाऊंगी ,तब से ये बच्चियां ही मेरी रंग-बिरंगी दुनिया हो गईं.इतिहास पढ़ाने का लक्ष्य भी तो यही सोचा था कि बच्चो में जैसे भी हो  आत्मबल पैदा कर पाऊँ ताकि बीते पल की कमजोरियों इन बच्चों पर कभी हावी ना हो.
-ललित ,अब तुम ही बताओ, अपने बनाये हुए इस दुनिया से निकल कर जीना क्या तुम से ,या अपने अस्तित्व के साथ न्याय कर पाउंगी?????
आज ललित के संग रंजना का ये रूप ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो अपनी धरा से मिलन की खातिर जैसे "झुक गया हो आसमान."

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