आज गुड्डू ठीक एक साल का हो गया और ठीक एक साल बाद ही आये हैं उसके ललित मामा.गुड्डू की दादी ना जाने मन ही मन कितनी ही दुआएं दे रही थीं ललित को.
"ललित बेटा ,क्या जरुरत थी इन तोहफों की???
पहले ही तुमने हमारे लिए कम किया है क्या!!!!"
दुबला पतला सा एक युवा जो कि गुड्डू की माँ का दूर के रिश्ते में भाई था. बचपन में माँ-बाबूजी की गरीबी से मजबूर हो दिल्ली भाग आया था. आजादपुर सब्जीमंडी में एक फल के होलसेल विक्रेता के यहाँ फल की पेटी ट्रक पर चढाने -उतारने की उसे नौकरी मिली. जैसे जैसे वह बड़ा होता गया ,अपनी ईमानदारी से अपने मालिक का विश्वासपात्र होता गया.वह मालिक का बही खाता से ले सामान की हिसाबदारी सभी देखने लगा.बदले में मालिक ने उसे घर, बीवी बच्चों के लालन-पालन सभी का जिम्मा ले लिया था.
ललित अपने माँ बाबूजी को बेहद प्यार करता था.
एक बार जब उसकी माँ कैंसर के बिमारी से पीड़ित हुई. डॉक्टर ने ऑपरेशन की सलाह दी थी.ललित ने जैसे-तैसे पैसों का तो इंतज़ाम कर लिया था. अंग्रेजी नहीं समझ पाने के कारण वह डॉक्टर की बहुत बातें समझ नहीं पाता.आप्रेशन की जो भी तारीख मिलती , वह या तो उससे पहले पहुंचता या बाद में. परेशान हो एक बार वह गुड्डू की नानी के यहां पंहुचा. शीला (गुड्डू की माँ)का तब विवाह नहीं हुआ था.ललित ने डॉक्टर से बात करने हेतु , शीला से अपनी मां के लिए उसका वक्त माँगा था.शीला ने उसके कहे अनुसार अपनी नौकरी सके दिन की छुट्टी ले ली थी.
आप्रेशन के दिन शीला पूर्ण रूपेण वहां उपस्थित रही. भली-भांति डॉक्टरों से बातें भी कीं. आप्रेशन हो भी गया परन्तु ललित की माँ बच नहीं पाई.
इस घटना के तीन साल हुए थे. शीला की भी शादी हो गई . ललित को जब शीला के गर्भवती होने की बात पता चली तो उसने पूरे नौ महीने तक बिना पैसे लिए उसके ससुराल फलों की टोकरी पहुचवाता रहा. और आज.....
ना जाने फिर से ठीक एक साल बाद गुड्डू के जन्मदिवस पर अपने आशीष और तोहफों संग उनकी खुशियों में शामिल है.....
Monday, 30 January 2017
मेहरबानी
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