हकीकत जान कर भी क्यों अंजान है सब"
बात यूँ थी, मन था
कुछसोच रहा
हत्या का था मुकदमा
स्त्री थी दहेज पीड़िता
जी कर भी बेमौत
मारा गया उसका
दो मास का बच्चा
हालात की बेबसी का
उसके सबको थी पता
समझा सकते थे लोग
धमका सकते थे लोग
सगे संबंधियों के उसको
पर करना पड़ा था उसे
हालात से समझौता
भला पैसों की दुनिया में
मुफलिसी को कौन पूछता
बेटी जो हुई , हालात माँ-बाप
की थी वो जानती
जान कर भी
सब कुछ ,मुसीबतों
में पाँव अपने उसने
डाल दिये
अब पूछता है कौन
उसकी जान को
अखबारों के पन्ने सा बना
दिया नियम कानून को
जहां कानून भी अँधा है
पैसे कमाने का
छाया है एक नशा
क्या समाज
कैसे जज़्बात ,
"हकीकत जान कर भी
क्यों अंजान है सब".
©@Ajha.04.01.17
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