Tuesday, 21 February 2017
आज से पहले..
राजनीति
Friday, 17 February 2017
समा
चले आते हैं कातिल भी दुनियाँ में
दोस्ती की रस्म निभाने को ,
तुम इश्क की शमा जलाये रखना .
@Ajha.18.01.17
मेरी सोच का सूर्य
मेरी सोच का सूर्य"
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"शुभ संध्या रौशन भाई"
"अरे आप! कहाँ थे इतने दिनों तक...नवीनजी,शुभ संध्या आपको भी."☺
" आपका पार्क में आना,घंटो प्रकृति को निहारना और कैनवास पर उतारना, पूर्णतः प्रकृति एवं कैनवास को समर्पित आप और बालकनी से निहारती मैं आपको मैं आपको समर्पित हूँ। "नवीन जी ने रौशन जी से कहा
" इधर दो चार दिनों से देख रहा हूँ कि पार्क में आपके साथ ना ही कैनवास होता हैं ना ही तूलिका और ना ही प्रकृति को आप उस रूप में निहार रहे होते हैं।अजीब सी मायूसी हर वक्त मुझे आपकी सूरत में दिख पड़ती है ?"
" बिलकुल सही कह रहे हैं रौशन भाई , जब मैं रोजगार के कामों में उलझा रथा तब ना जाने कैसे मेरी तूलिका मेरा साथ देती थी.'सूर्य' जिससे मैं ताउम्र आकर्षित रहा,कितनी ही चित्रकारियाँ कर डाली , और खुद को हमेशा यही दिलासा देता रहा कि गृहस्थ जीवन से निवृत हो अपनी चित्रकारी पर सारा समय दूंगा. 'सूर्य' को तूलिका की परवाज़ दूंगा,इंद्रधनुषी रंग दूंगा ,इसके तेज़ में चार चांद लगाऊंगा।
पर आज, मेरी सोच को ना जाने क्या हो गया ! ना जाने मुझे ऐसा क्यों लग रहा की सूर्य अब बूढा हो गया है.
इधर कई दिनों से मेरे दिमाग और दिल में एक युद्ध सा छिड़ गया हैं ।दिमाग कहता है सूर्य अब बूढा हो गया है और दिल इस बात को मानने को तैयार नहीं.मैं ने भी अभी हार नहीं मानी और अपने दिल की ही सुन रहा हूँ.बस बूढ़े सूर्य को जवां करने की सोच खुद में ला रहा हूँ और प्रण भी यही लिया है कि तभी अपने तूलिका और कैनवास को हाथ लगाऊंगा."
आज मैं भी उसी पार्क में रौनक जी के समीप बैठी उनकी बातें सुन रही थी.सोच रही थी की काश रौनक जी को अपने अक्स की तलाश मिल जाय ,ताकि फिर से उनका मन अस्ताचलगामी सूर्य में उसकी सुंदरता देखे ना की बूढा होता हुआ.
@Ajha.10.02.17
तुम्ही तो है
"तुम्ही तो हो......"
तुमसे मिलना जीवन मिलना
तुम ही मेरे जीवन का आधार सखि
जीवन देखा ,प्यार मिला ,है तुझ पर
मेरा अधिकार ,तुम्ही मेरा घर-बार सखि
मेरे नैना ,कैसे नैना स्वप्न तुम्हारे ही देखे हैं
नैनो की तुम ज्योति, तुम्ही मेरा संसार सखि
सोच तेरी मन में मेरे शीतल जल सा,अमृत
जल सा,मैं नदिया तूँ है मेरा धार सखि
धूप है तीखी झुलस रहा सर्वस्व,तेरा होना
छाँव वृक्ष की और उसके पर प्रहार सखि
तुफानो में डूब रही थी मेरी नैया,ले हाथों
में पतवार, तुम्ही तो थे मेरे खेवनहार सखि
माया मोह है दुनिया,ठगों से भरी पड़ी
झंझावातों से भरे मन का तुम्ही तो सरकार सखि
मेरी आदत तेरी आदत मुझको है स्वीकार
तूँ ही तो हो मेरा अलंकार सखि
ख्वाब मेरे तुम ,चाह मेरे तुम ,तुम से है सरोकार
बसे हुए हो मन में मेरे ,जीवन का है तूँ सार सखि.
@Ajha.10.02.17
©अपर्णा झा.
My love
Maiden effort in english poetry writing😊😊😊
"My Love"
-----------------
Love is in the air
can feel it here and
there
what an atmospheric sphere!
green woods and the morning air
Sun rise , the temple bells, chirping of birds ,are
like celebrations everywhere
mustered flowers in the fields
expressing the welcome of the season spring
whispering of cool morning air
defines how much do you care
morning dews small like infinitum
I can measure your love even in that horizon
the high mountains standing in
one position
shows your determination
the sound of water falls,expressing your love all in all
I know the way you love,your unending expectations,insecurities and the fear
Sometimes make me puzzled
Sometimes l get disheartened
Trying to win your love
Some times l feel depressed
But you have qualities which inspires motivate me
to love you again and again
Your presence, your patience,
Your art of love
O God ! Here l am, here I am
You have gifted me, my love
As a loving, lucky mascot.
@Ajha.13.02.17
©Aparna Jha.
खुश रहने का सबब
खुश रहने का सबब था
चाँद तारों को निहारना
वो बागों की खुशबू ए गुल में
तुझे ही तलाशना
रंगे हिना प्यारी थी बहुत
कोयल की कूक में
तेरी सदाओं को सोचना
हलकी सी जो हवाओं का झोंका हुआ
कंपन हुई ,एक अनजान सा डर
एक आहट, क्यों हुआ ये दिल आहत
बहुत मुश्किल से गुजरी है रात
यारब
चुपके से किसी ने
ज़माने की बात कर दी
है फिर से.
@Ajha.16.02.17
हौंसला तेरी याद का
रेत का महल
दरो-दीवार भी जर-जर
धूप भी तेज राहों पर
काली स्याह रात
शीशे का दिल लिए
शम्मा की लौ को हैं यूँ सम्भाले हुए
ताबीर की जो मजबूती है
ना ढहेगा कभी
ना टूटेगा कभी
ना बुझेगा ही
ज़माने की नज़र है,पर
इक हौंसला है और तेरी ही
इबादत में दिन गुज़रा है
या खुदा ! तेरा ही करम
तेरा ही करम.
@Ajha.17.02.17
©अपर्णा झा.
गोदना(टैटू)
"गोदना (tattoo)"
"माँ अब ये क्या?"
"ये गोदना है बेटे. अब तुम्हारी शादी हो गई है,आज तुम्हारी बाहों पर गोदना गोदाने का रस्म निभाया जाएगा."
"ये कैसा रस्म माँ ???"
"अव्वल तो इस बूढ़े गरीब से मेरा विवाह कर दिया और अब ये दर्द भी मुझे ही सहना होगा.
क्यों माँ क्यों ???"
"बेटा हम कबीलाई लोग हैं , हमारा ना कोई ठौर ना ठिकाना. अब तक तुम्हारी रक्षा हमारी जिम्मेदारी थी अब तुम ससुराल की हो गई.तुम्हारा परिचय तुम्हारे पति का नाम और पता , तुम्हारी बाहों पर होगा. यही गोदना अब तुम्हारी पहचान होगी."
तभी "अंजू दीदी" समाज कल्याण मंत्रालय द्वारा नियुक्त समाज सेविका का यहां आगमन हुआ. सारी बातें उसने सुन ली थी ,बोलने पड़ी_
"क्या मासी कब तक बच्चों को अपने सा ही जीवन जीने को विवश करोगी! माना परेशानियां बहुत हैं पर सरकार द्वारा आप लोगों के विकास की जो योजनाएं चल रहीं हैं ,कम से कम उसका तो हिस्सा बनो. माना सारी सीढियां एक बार में चढ़ी नहीं जा सकती.पर कम से कम अपने से दो सीढियां अधिक भी तो इन बच्चों को अपने जीवन में चढ़ने दो. कुछ तो अक्षर ज्ञान हो. इनकी बाहों पर क्या गोदा गया है वो भी तो कम से कम ये पढ़ लें."
"रहने दो अंजू दीदी ,ये बातें माँ की समझ से बाहर है.पर हाँ, मैं प्रण लेती हूँ कि अपने बच्चों को इतना साक्षर तो करुँगी ताकि इन्हें गोदना के सहारे की जरुरत नहीं पड़े."
@Ajha.17.02.17
©अपर्णा झा.
रिश्तों की मृगतृषणा
चाहतों की एक अनंत सूची
जहां सिर्फ अपेक्षाएं हीं
जो रूप लेलें महत्वाकांक्षाओं की
एक खतरनाक डगर चल निकले
जहां सोच और दृष्टिकोण एकपक्षीय हों
जीवन से सिर्फ शिकायतें
मन बेचैन ,सुनसान राहों पर भटक रहे
कहाँ रहता फिर सुख शांति जीवन में
हर स्थान ,हर रास्ता,हर इंसान
वक्त सभी तो झूठे से दिखने लगते हैं
हरदम हरपल एक अनजाना सा डर
साथ छूटने का, दर्द
रिश्ते टूटने का
सताता हैं
क्षण भंगुर जीवन
रेल की पटरियों जैसी अनंत
लगने लगती है
हर मौसम दगा बाज़
ठगी और फरेबी का
चोली -दामन का साथ लगता है
किस्मत हरदम उदास दिखती है
यकीनन सब है इक धोखा
बस इंतिज़ार रहे इन तूफानों
के गुज़र जाने का
क्षण भर का सब खेला है
इक परत पड़ी जो धूल की
कुछ पल ही धुंधला है
होश जो खोया मन ने
फिर लौट के आना ही है
फिर जो सोचो _
क्या तेरा और क्या मेरा
इसी सोच में गुज़रे दिन
तैयारी अब उस पार की
ये तो बस चार दिनों का
मेला है.
@ Ajha . 17. 02. 16
©अपर्णा झा
मैथिली ठाकुर
"मैथिली ठाकुर"
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हाँ ,यही तो नाम है उस छोटी सी गायिका का.आज पांच-छः दिनों से लगातार यू ट्यूब पर मैथिली ठाकुर की गायिकी के विविधताओं का रसास्वादन कर रही हूँ. सोचा अपने सभी फेसबुक मित्रों से भी इनका परिचय साझा करूँ. फिर सोचने लगी की एक नए चेहरे से परिचय कराने में रचनाओं के शीर्षक भी तो दमदार तो होने चाहिए. परन्तु मैथिलि ठाकुर का नाम और व्यक्तित्व ही अपने आप में सशक्त और परिपूर्ण जान पड़ा कि बांकी अन्य शीर्षक मुझे आकर्षित नहीं कर पाये. मिथिलांचल की इस छोटी सी बिटिया के मैथिलि गायन से वशीभूत हो मेरी जिज्ञासाएं बढ़ने लगीं.इस बच्ची के गायकी में पक्के रागों की तासीर,ग़ज़ल की बारीकी ,मैथिली लोकगीतों की वो मिठास सभी कुछ तो है.इसकी गायकी में एक उत्सव जैसी बात नज़र आती है.हैरान तो मैं इसके मैथिलि गायकी से ही थी ,परन्तु जिस तरीके से इसने "केसरिया बालमा आओजी ," और ग़ज़ल "याद पिया की आये हाय ये दर्द सहा ना जाए"(पक्का राग) को गाया है मैं तो इसकी मुरीद हो गई हूँ.
अधिकतर गायक या गायिका अपने गायिकी के किसी एक क्षेत्र में ही अपनी विशेष काबिलियत दिखा पाते हैं.जैसे कोई अगर क्लासिकी मौसिकी गाता है तो वह पॉप गायकी में शायद बेहतर प्रदर्शन ना दे पाए या फिर कोई पॉप गानेवाले के लिए शायद भजन , ग़ज़ल या किसी अन्य विधा में गाना थोड़ा मुश्किल हो .या फिर उसमें रुहदारी वाली बात ना हो. यहां तो मैथिली ठाकुर किसी भी तरीके के गाने को आसानी और बखूबी से गा जाती है , क्या बात है!
मैथिली संस्कृति में पली बढ़ी इस बच्ची ने,विद्यापति के पदों को और मिथिला संस्कृति से जुड़ कई गीतों जैसे विवाह एवं अन्य उत्सवों पर गए जाने वाले लोक गीत एवं भजन को बड़े ही रूहदारी के संग गाया है.
अब तक मिथिला संस्कृति के सांस्कृति विरासत (जो की गायकी के रूप में है) को शारदा सिन्हा जी ने अपनी गायकी से विश्व पटल पर पहचान दिलाई.आज उसी सांस्कृतिक विरासत को भविष्य से जोड़ने की कड़ी शायद मैथिली ठाकुर के रूप में हो. भविष्य में असीम संभावनाएं उसे हासिल हो,संगीत की ऊंचाइयों को छूएं, अपने देश और प्रदेश का नाम ऊंचा करे. यशस्वी हों,तेजस्वी हों, "rising star" के मंच पर विजयी हों,मैथिली ठाकुर को मेरी अशेष शुभकामनाये भी.
@Ajha.17.02.17
©अपर्णा झा.
*अगर कलम की ताकत कला को आगे ले जा सकती है तो ये मेरा दायित्व है कि अपने कलम का मैं इस्तेमाल करूं.
Sunday, 12 February 2017
Love
Love is in the air
can see it here and
there
what an atmospheric sphere!
green woods and the morning air
Sun rise , the temple bells, chirping of birds ,are
like celebrations everywhere
mustered flowers in the fields
expressing the welcome of the season spring
whispering of cool morning air
defines how much do you care
morning dews small like infinitum
I can measure your love even in that horizon
the high mountains standing in
one position
shows your determination
the sound of water falls,expressing your love all in all
I know the way you love,your unending expectations,insecurities and the fear
Sometimes make me puzzled
Sometimes l get disheartened
Trying to win your love
Some times l feel depressed
But you have qualities which inspires motivate me
to love you again and again
Your presence, your patience,
Your art of love
O God ! Here l am, here I am
You have gifted me, my love
As a loving, lucky mascot.
Saturday, 11 February 2017
"मेरी सोच का सूर्य"
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मेरे घर के सामने ही दिल्ली का सबसे मसहूर पार्क 'लोदी गार्डेन'.इस पार्क को अपने बालकोनी में बैठ देखते रहना अद्भुत आनन्द अनुभूति है. और रौशन जी ने तो अपने चित्रकार होने से आज बीस सालों से इस पार्क की शोभा बढ़ा रहे हैं.अपने लिए इन्होंने यहां हर आने जाने वालों में सामान पैदा किया है.स्वाभाव से चित्रकार होते हुए भी रोज़ी-रोटी की मजबूरी ने रौशनजी को प्रोफ़ेसर बना दिया था. परन्तु अपनी दिनचर्या से वह कुछ पल अपनी चित्रकारी का निकाल ही लेते थे और अपने तय स्थान यानी लोदी गार्डेन में बैठ अपनी तूलिका से प्रकृति को उकेरते रहते .सुबह सूर्य की किरणें को निहारना और फिर अस्ताचलगामी सूर्य से रोज विदा लेना ,एक सोच के साथ कि फिर कल सूर्य दर्शन को अवश्य आएंगे.इधर बीते तीन चार दिनों से मेरे पति को ना जाने क्यों रौशन जी उदास दिख रहे थे .आखिरकार आज रौशनजी को पार्क में देख वह उनसे मिलनेेे गए.
"शुभ संध्या रौशन भाई"
"अरे आप! कहाँ थे इतने दिनों तक...नवीनजी,शुभ संध्या आपको भी."☺
"वैसे तो आपके दर्शन मुझे अपनी बालकोनी से होते ही रहते हैं.आप, प्रकृति और अपने कैनवास को समर्पित हैं और मैं आपको ...."
आपके दर्शन मेरे लिए सूर्य नमस्कार और संध्या वंदन दोनों ही जैसे हैं.आपके चेहरे की हर मुद्राओं को दूर से भी पढ़ सकता हूँ.इधर दो चार दिनों से मैं देख रहा हूँ कि पार्क में आपके साथ ना तो कैनवास ना ही तूलिका होती है और नाही प्रकृति को आप उस रूप में निहार रहे होते हैं........कुछ मायूसी सी नज़र आ रही है आपके चेहरे पर???
"बिल्कुल सही पकड़ा आपने....☺
"रौशन भाई .....पहले इतनी उलझनो में भी उलझा रहता था तब भी ना जाने कैसे मेरी तूलिका मेरा साथ देती थी.'सूर्य' जिससे मैं ताउम्र आकर्षित रहा,कितनी ही चित्रकारियाँ कर डाली थी, मन ही मन खुद को हमेशा यही दिलाशा देता रहा कि गार्हस्थ जीवन से निवृत हो अपनी चित्रकारी पर ही समय दूंगा.वो 'सूर्य' जिसे मैंने अपने मन में बसा कर रखा था उसे फिर अपनी तूलिका की परवाज़ दूंगा,इंद्रधनुषी रंग दूंगा ,इसके तेज़ में चार चांद लगाऊंगा,वगैरह-वगैरा.....
पर आज, मेरी सोच को ना जाने क्या हो गया है!!!!
वही सूर्य जिसमें मैं हमेशा अपना बचपन और जवानी की सुंदरता देखता , उम्र की मासूमियत और परिपक्वता को उकेरता ......
......ना जाने मुझे ऐसा क्यों लग रहा की वही सूर्य अब बूढा हो गया है.
इधर कई दिनों से मेरे दिमाग और दिल में एक युद्ध सी छिड़ी है_दिमाग कहता है सूर्य अब बूढा हो गया है और दिल इस बात को मानने को तैयार नहीं.मैं ने भी अभी हार नहीं मानी और अपने दिल की ही सुन रहा हूँ.बस बूढ़े सूर्य को जवां करने का प्रण लिया है,जीत होने पर ही अपने तूलिका और कैनवास को हाथ लगाऊंगा. ...."☺
आज मैं भी उसी पार्क में रौनक जी के समीप बैठी उनकी बातें सुन रही थी.सोच रही थी की काश रौनक जी को अपने अक्स की तलाश मिल जाय ,ताकि फिर से उनका मन अस्ताचलगामी सूर्य में उसकी सुंदरता देखे ना की बूढा होता हुआ.
@Ajha.10.02.17
Thursday, 9 February 2017
शब्द उत्पत्ति : अपभ्रंश"
" उत्पत्ति : अपभ्रंश"
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ऐसा मनोरम दृश्य......
मानो जैसे बासंती मौसम ने हरीतिमा के संग एक पीताम्बरी आभा पूरे वातावरण में बिखेर दी हो.धूप भी बासंती हो चली हो,ऐसे में खुले आकाश के नीचे, अपनी बालकोनी में दरी बिछा मैं आँखें मूंदे हुए लेती हूँ.ना जाने कितनी ही बातें मस्तिष्क पटल पर सजीव हो घूम रहे हैं.इन सबके बीच परसों की वो घटना भी याद आ रही है कि कैसे सारी शाम मैं अकेले में मुस्कुराती रही. मन के शब्दकोष में तलाशती रही उन शब्दों का मतलब जिसे आजकल कामवालियों ने (झाड़ू-पोछा करने)अपने भावभिप्राय के लिए प्रयोग कर रही हैं. हालांकि इन शब्दों से मैं भली भांति परिचित हूँ.शब्दकोष में जो इसके अर्थ दिए हुए हैं उनसे भी परिचित हूँ ,परन्तु उस दिन उन शब्दों का प्रयोग ......
कुछ मज़ा ही अलग था.
हुआ यों कि मेरी कामवाली अपनी बीमारी के कारण काम पर नहीं आ पाई थी. रविवार और सोमवार के जूठे बर्तनों का अम्बार मुझसे सहा नहीं जा रहा था.परन्तु ठण्ड के मारे पानी छूने का मन भी नहीं☺.अपार्टमेंट के गार्ड भैया को फोन कर किसी कामवाली को भेजने को कहा.गार्ड भैया ने भेज भी दिया.दरवाज़े पर घंटी बजी.कामवाली को देख तत्काल ही मन आनन्दित हो चला था.तभी उसने मेरा साक्षात्कार लेना शुरू कर दिया ...कब?....क्यों?....कैसे?....
"अच्छा तो रोज के लिए नहीं चाहिये,प्राइवेट के लिए चाहिये? पर कब तक के लिए चाहिए ????
आज-आज के लिए चाहिए!!!!फुटकर कराओगे ?"
"ठीक है, तो पैसे की बात सुन लो. रोज के लिए तो वही चार्ज है जो महीने के अंत में सब लेती हैं. और जो 'प्राइवेट' या 'फुटकर' काम कराओगे तो उसके पैसे फिर 100रु रोज के हिसाब से......"
ये तो जानती थी कि हर क्षेत्र या व्यवसाय की अपनी एक भाषा शैली (professional language) होती है और उसी के अनुसार शब्दावली भी.परन्तु उस दिन जो व्यवसाय की भाषा शैली थी उससे परिचित तो थी पर उन शब्दावलियों(terminology)ने मुझे आज तक विस्मित कर रखा है. कहीं अपभ्रश शब्द एवं भाषाओं की उत्पत्ति ऐसे ही तो नहीं.......!!!!
.....'रोज का' , 'प्राइवेट', 'फुटकर'😢😊😎
@Ajha.09.02.17
©अपर्णा झा.
Monday, 6 February 2017
फाल्गुनी रंग
"चाची कात्यायनी को मैं ले जा रहा हूँ....."
"ठीक है....
पर ध्यान रखना. कहीं गिर ना जाए....
कोई धक्का ना देदे इसे...
ठीक से रोड पार करना..."
रमा चाची का इतना कहना रोज की ही तो बात थी और इधर सृजन का भी रोज का नियम... कात्यायनी को अपने संग स्कूल ले जाना, उसे खेलने ले जाना और हर बात में उसके साथ होना.
सृजन अपने परिवार का इकलौता संतान था.कात्यायनी अपने परिवार की इकलौती बेटी जो देख नहीं सकती थी.न कात्यायनी और उसके परिवार से सृजन का बचपन से ही एक अजीब सा था. दसवीं के बाद उसे पिता के स्थानांतरण से शिमला जाना पड़ा था. जाते हुए वह बहुत रोया था.जिस परिवार के साथ अपना पूरा बचपन बिताया उसे भला चढ़ कर कौन जाना चाहता, खैर....
पर्व त्योहारों या ऐसे भी कभीखोज खबर लेने के बहाने बातें होती रहती थीं.जैसे-जैसे कात्यायनी बड़ी होती जा रही थी परिवार वालों की चिंता भी बड़ी होती जा रही थी. अब सृजन इंजीनयर बन गया है और उसे अपने पुराने शहर को जाना है.उसे ख़ुशी इस बात की थी कि वह कात्यायनी और उसके परिवार से लंबे अरसे के बाद फिर से मिल पायेगा.
आज होली का दिन ....सृजन कात्यानी के घर .....हाथ में गुलाबी गुलाल.....
कात्यायनी हरे सूट और पीली चुनरी ओढ़े, उसके
ख़ुशी की सीमा नहीं.सृजन ने चाचा-चाची के पाँव पर गुलाल रखे. बातों का सिलसिला शुरू हुआ और चाची की चिंता व्यथा भी.
"चाची सब अच्छा होगा" सृजन चाची को लगातार समझाने की कोशिश में.पर भला वो क्यों समझती.
"क्या अच्छा होगा ???? कौन करेगा इससे विवाह, भला? क्या तुम ऐसी लड़की से विवाह करना चाहोगे????"
होली ने आज जैसे माहौल को फाल्गुनी रंगों से सराबोर कर रखा हो और कात्यायनी इस माहौल में दुल्हन सी आभा बिखेर रही हो.....
सृजन ने तभी कात्यायनी का हाथ अपने हाथों में लिया और तत्काल ही अपने हाथों में रखे गुलाबी गुलाल को उसकी उसकी मांग में भर दिया.
"दीजिये मुझे आशीर्वाद कि मैं कात्यायनी के लिए एक अच्छा पति साबित हो सकूँ."
वाकई में फाल्गुनी रंगों का ऐसा कमाल....
कभी सोचा ना था.
@Ajha.07.02.17
Friday, 3 February 2017
किस्सा सृजन
चलो आज एक खयाली फिल्म शूट करते हैं....मैं ने सीता से कहा.
"कहाँ चलना होगा!!!!"
"लाल किले...."
"बस में लदा जाय ....कुछ कहानी तो सोचनी होगी ना...
"कितनी ही तो कहानियां कल ही मैंने जी ली थी मुनिरका से कनॉट प्लेस के रास्ते में"☺☺☺_मैंने कहा.
एक खुंसट से अंकल ....
वो मोती वाली आंटी ... कैसे भीड़ में दब कर
चिल्लाने लगी थी.
और हाँ वो साहब जो बात-बात में बेवजह ही लड़
पड़ते ☺
कैसे मैंने चुटकी ली थी_ "क्या बात है भाई साहब!
बड़ेगुस्सेमें हो ,कहीं सुबह-सुबह भाभी जी से लड़ाई तो नहीं हो गई"☺😊☺☺
"कैसे तड़ेडा था मुझे??? और फिर शान्ति से बैठ गए थे वो साहब."
मेरी सीट कण्डुक्टरके साथ थी. तो हर आने जाने वालों के चेहरे के भाव पढने में मुझे मजा आ रहा था, कि तभी एक प्यारी सी अनजानी सी सुनी सुनाई आवाज़..... "कंडक्टर साहब हमको हौज़ ख़ास जाना है ....बताइयेगाsss कहाँ उतरें हम?
"यही उत्तर जा रे मेरे भाई, और हाँ , आग्गे की मुह करके उतरियो".
मेरी तरफ मुंह करके कंडक्टर साहब हँसते हुए बोले _ बिहारी साला....पहली बार आया है...😊
बस से उतारते मैंने भी उस कंडक्टर की वाट लगा दी थी....भई देख मैं भी बिहारी ही ठहरी 😊😊😊😊चेहरा बिलकुल देखने वाला हो गया था उसका".
" अब जरा बताओ सीते !दिल्ली के बसों से अच्छी कोई जगह कहानी सृजन के लिए हो सकती है भला???" मैंने कहा
"बिलकुल नहीं ..... चलो आज फिर इक कहानी ढूंढ लाते हैं ,लाल किला की सैर दिल्ली के बस से कराते है.".....
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