Friday, 17 February 2017

गोदना(टैटू)

"गोदना (tattoo)"

"माँ अब ये क्या?"
"ये गोदना है बेटे. अब तुम्हारी शादी हो गई है,आज तुम्हारी बाहों पर  गोदना गोदाने का रस्म निभाया जाएगा."
"ये कैसा रस्म माँ ???"
"अव्वल तो इस बूढ़े गरीब से मेरा विवाह कर दिया और अब ये दर्द भी मुझे ही सहना होगा.
क्यों माँ क्यों ???"
"बेटा हम कबीलाई लोग हैं , हमारा ना कोई ठौर ना ठिकाना. अब तक तुम्हारी रक्षा हमारी जिम्मेदारी थी अब तुम ससुराल की हो गई.तुम्हारा परिचय तुम्हारे पति का नाम और पता , तुम्हारी बाहों पर होगा.  यही गोदना अब  तुम्हारी पहचान होगी."
तभी "अंजू दीदी" समाज कल्याण मंत्रालय द्वारा नियुक्त समाज सेविका का यहां आगमन हुआ. सारी बातें उसने सुन ली थी ,बोलने पड़ी_
"क्या मासी कब तक बच्चों को अपने सा ही जीवन जीने को विवश करोगी! माना परेशानियां बहुत हैं पर सरकार द्वारा आप लोगों के विकास की जो योजनाएं चल रहीं हैं ,कम से कम उसका तो हिस्सा बनो. माना सारी  सीढियां एक बार में चढ़ी नहीं जा सकती.पर कम से कम अपने से दो सीढियां अधिक भी तो इन बच्चों को अपने जीवन में चढ़ने दो. कुछ तो अक्षर ज्ञान हो. इनकी बाहों पर क्या गोदा गया है वो भी तो कम से कम ये पढ़ लें."
"रहने दो अंजू दीदी ,ये बातें  माँ की समझ से बाहर है.पर हाँ, मैं प्रण लेती हूँ कि अपने बच्चों को इतना साक्षर तो करुँगी ताकि इन्हें  गोदना के सहारे की जरुरत नहीं पड़े."
@Ajha.17.02.17
©अपर्णा झा.

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