"मेरी सोच का सूर्य"
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मेरे घर के सामने ही दिल्ली का सबसे मसहूर पार्क 'लोदी गार्डेन'.इस पार्क को अपने बालकोनी में बैठ देखते रहना अद्भुत आनन्द अनुभूति है. और रौशन जी ने तो अपने चित्रकार होने से आज बीस सालों से इस पार्क की शोभा बढ़ा रहे हैं.अपने लिए इन्होंने यहां हर आने जाने वालों में सामान पैदा किया है.स्वाभाव से चित्रकार होते हुए भी रोज़ी-रोटी की मजबूरी ने रौशनजी को प्रोफ़ेसर बना दिया था. परन्तु अपनी दिनचर्या से वह कुछ पल अपनी चित्रकारी का निकाल ही लेते थे और अपने तय स्थान यानी लोदी गार्डेन में बैठ अपनी तूलिका से प्रकृति को उकेरते रहते .सुबह सूर्य की किरणें को निहारना और फिर अस्ताचलगामी सूर्य से रोज विदा लेना ,एक सोच के साथ कि फिर कल सूर्य दर्शन को अवश्य आएंगे.इधर बीते तीन चार दिनों से मेरे पति को ना जाने क्यों रौशन जी उदास दिख रहे थे .आखिरकार आज रौशनजी को पार्क में देख वह उनसे मिलनेेे गए.
"शुभ संध्या रौशन भाई"
"अरे आप! कहाँ थे इतने दिनों तक...नवीनजी,शुभ संध्या आपको भी."☺
"वैसे तो आपके दर्शन मुझे अपनी बालकोनी से होते ही रहते हैं.आप, प्रकृति और अपने कैनवास को समर्पित हैं और मैं आपको ...."
आपके दर्शन मेरे लिए सूर्य नमस्कार और संध्या वंदन दोनों ही जैसे हैं.आपके चेहरे की हर मुद्राओं को दूर से भी पढ़ सकता हूँ.इधर दो चार दिनों से मैं देख रहा हूँ कि पार्क में आपके साथ ना तो कैनवास ना ही तूलिका होती है और नाही प्रकृति को आप उस रूप में निहार रहे होते हैं........कुछ मायूसी सी नज़र आ रही है आपके चेहरे पर???
"बिल्कुल सही पकड़ा आपने....☺
"रौशन भाई .....पहले इतनी उलझनो में भी उलझा रहता था तब भी ना जाने कैसे मेरी तूलिका मेरा साथ देती थी.'सूर्य' जिससे मैं ताउम्र आकर्षित रहा,कितनी ही चित्रकारियाँ कर डाली थी, मन ही मन खुद को हमेशा यही दिलाशा देता रहा कि गार्हस्थ जीवन से निवृत हो अपनी चित्रकारी पर ही समय दूंगा.वो 'सूर्य' जिसे मैंने अपने मन में बसा कर रखा था उसे फिर अपनी तूलिका की परवाज़ दूंगा,इंद्रधनुषी रंग दूंगा ,इसके तेज़ में चार चांद लगाऊंगा,वगैरह-वगैरा.....
पर आज, मेरी सोच को ना जाने क्या हो गया है!!!!
वही सूर्य जिसमें मैं हमेशा अपना बचपन और जवानी की सुंदरता देखता , उम्र की मासूमियत और परिपक्वता को उकेरता ......
......ना जाने मुझे ऐसा क्यों लग रहा की वही सूर्य अब बूढा हो गया है.
इधर कई दिनों से मेरे दिमाग और दिल में एक युद्ध सी छिड़ी है_दिमाग कहता है सूर्य अब बूढा हो गया है और दिल इस बात को मानने को तैयार नहीं.मैं ने भी अभी हार नहीं मानी और अपने दिल की ही सुन रहा हूँ.बस बूढ़े सूर्य को जवां करने का प्रण लिया है,जीत होने पर ही अपने तूलिका और कैनवास को हाथ लगाऊंगा. ...."☺
आज मैं भी उसी पार्क में रौनक जी के समीप बैठी उनकी बातें सुन रही थी.सोच रही थी की काश रौनक जी को अपने अक्स की तलाश मिल जाय ,ताकि फिर से उनका मन अस्ताचलगामी सूर्य में उसकी सुंदरता देखे ना की बूढा होता हुआ.
@Ajha.10.02.17
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