चलो आज एक खयाली फिल्म शूट करते हैं....मैं ने सीता से कहा.
"कहाँ चलना होगा!!!!"
"लाल किले...."
"बस में लदा जाय ....कुछ कहानी तो सोचनी होगी ना...
"कितनी ही तो कहानियां कल ही मैंने जी ली थी मुनिरका से कनॉट प्लेस के रास्ते में"☺☺☺_मैंने कहा.
एक खुंसट से अंकल ....
वो मोती वाली आंटी ... कैसे भीड़ में दब कर
चिल्लाने लगी थी.
और हाँ वो साहब जो बात-बात में बेवजह ही लड़
पड़ते ☺
कैसे मैंने चुटकी ली थी_ "क्या बात है भाई साहब!
बड़ेगुस्सेमें हो ,कहीं सुबह-सुबह भाभी जी से लड़ाई तो नहीं हो गई"☺😊☺☺
"कैसे तड़ेडा था मुझे??? और फिर शान्ति से बैठ गए थे वो साहब."
मेरी सीट कण्डुक्टरके साथ थी. तो हर आने जाने वालों के चेहरे के भाव पढने में मुझे मजा आ रहा था, कि तभी एक प्यारी सी अनजानी सी सुनी सुनाई आवाज़..... "कंडक्टर साहब हमको हौज़ ख़ास जाना है ....बताइयेगाsss कहाँ उतरें हम?
"यही उत्तर जा रे मेरे भाई, और हाँ , आग्गे की मुह करके उतरियो".
मेरी तरफ मुंह करके कंडक्टर साहब हँसते हुए बोले _ बिहारी साला....पहली बार आया है...😊
बस से उतारते मैंने भी उस कंडक्टर की वाट लगा दी थी....भई देख मैं भी बिहारी ही ठहरी 😊😊😊😊चेहरा बिलकुल देखने वाला हो गया था उसका".
" अब जरा बताओ सीते !दिल्ली के बसों से अच्छी कोई जगह कहानी सृजन के लिए हो सकती है भला???" मैंने कहा
"बिलकुल नहीं ..... चलो आज फिर इक कहानी ढूंढ लाते हैं ,लाल किला की सैर दिल्ली के बस से कराते है.".....
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