रेत का महल
दरो-दीवार भी जर-जर
धूप भी तेज राहों पर
काली स्याह रात
शीशे का दिल लिए
शम्मा की लौ को हैं यूँ सम्भाले हुए
ताबीर की जो मजबूती है
ना ढहेगा कभी
ना टूटेगा कभी
ना बुझेगा ही
ज़माने की नज़र है,पर
इक हौंसला है और तेरी ही
इबादत में दिन गुज़रा है
या खुदा ! तेरा ही करम
तेरा ही करम.
@Ajha.17.02.17
©अपर्णा झा.
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